पाकिस्तानी स्त्री की यातना और संघर्ष पर केंद्रित इस पुस्तक के लेखों में उस औरत की समस्याएँ और मुद्दे विमर्श का मुद्दा बने हैं जो कभी आसमानी हवाओं से बहकाई गई तो कभी जमीनी संहिताओं से दहलाई गई । जमाने की बदलती हुई हवाओं ने उस औरत के जेहन पर जमी हुई सदियों की गर्द को साफ करना शुरू कर दिया है : आज उसके जेहन में एक सौ एक खयाल और एक हजार एक सवाल हैं। दरअसल, इस दूर तक फैली जमीन पर सारी रौनक उसी के दम से है, वरना आदम का इरादा तो यह था कि खुदा के बंदे खुदा के हर हुक्म पर सर झुकाते हुए बागे-अदन यानी जन्नत के बाग़ में जिन्दगी कभी न खत्म होनेवाले समय तक गुजार दी जाए। यह हव्वा थी जिसके अंदर जिज्ञासा थी, जिसने साँप के रूप में आनेवाले इब्लीस (शैतान) से संवाद किया। अच्छे-बुरे की पहचान करानेवाले पेड़ का फल खुद खाया और आदम को भी खिलाया। उसके विकास की कहानी मानव सभ्यता के विकास की कहानी है। लेकिन धरती पर आ कर आदम और हौवा का हश्र अलग-अलग क्यों हो गया? पाकिस्तान की विख्यात कथाकार और राजनीतिक टिप्पणीकार जाहिदा हिना के ये लेख इसी ट्रेजिक सचाई की तहकीकात करते हैं। बेशक संदर्भ पाकिस्तान की आम स्त्रियों की यातनाओं और संघर्षों का है, लेकिन यह लोमहर्षक कहानी भारत की भी है, बांगलादेश की भी और एक तरह से सारी दुनिया की है।
विभाजन से कुछ ही पहले बिहार के ज़िला सासाराम में जन्मी उर्दू की अति चर्चित संघर्षशील साहसी लेखिका ज़ाहिदा हिना का पालन-पोषण, शिक्षा-दीक्षा मुख्य रूप से कराची में हुई। माता-पिता के पाकिस्तान