सन् 1999 में प्रकाशित, तसलीमा तसरीन की आत्मकथा का पहला खंड, 'आमार मेयेर बेला' ने बंगाली पाठकों और उसका हिंदी अनुवाद, 'मेरे बचपन के दिन' ने हिंदी पाठकों का मन उत्ताल कर दिया था। आज यह पुस्तक अविस्मरणीय आत्मकथा के रूप में प्रतिष्ठित! 'उत्ताल हवा' उस आत्मकथा का दूसरा खंड है। इस खंड में तसलीमा के 16 से 26 की उम्र तक की कहानी समेटी गई है। लेखिका ने अपनी कथा में असहनीय स्पष्टवादिता के साथ गहरे ममत्वबोध का एक हैरतंगेज संगम प्रस्तुत किया है। लेकिन अब तसलीमा और बड़ी... और विराट होती जा रही है; अपनी चारों तरफ को जानने-परखनेवाली नज़र और ज़्यादा तीखी होती गई है; तजुर्बा की परिधि और अधिक विस्तृत होती गई है। इसलिए, इस खंड में तसलीमा के असली तसलीमा बनने की गोपन कथा, पाठकों के सामने, काफी हद तक उजागर हो उठती है। एक अदद पिछड़ा हुआ समाज और दकियानूसी परिवार में पल-बढ़कर बड़ी होती हुई लड़की, कैसे भयंकर कशमकश झेलती हुई, धीरे-धीरे प्राचीनता के बंधन तोड़कर, असाधारण विश्वसनीयता के साथ खिल उठी है। उनका प्यार, प्यार के सुख-दुःख, खुशी-वेदना, रिश्तों के उठते-गिरते, ऊँचे-नीचे झूमते अनिर्णीत झूले में झूलता मन और अंत में एक उत्तरण ! पाठकों के लिए एक मर्मस्पर्शी घना विषाद भरा तजुर्बा ! शुरू से लेकर अंत तक काव्य-सुषमा से मंडित गद्य । गद्य के रुल-मिलकर एकाएक कविता ! पाठकों के मन में भी 'दुकूल बहता हुआ'-
सुशील गुप्ता (Sushil Gupta)
सुशील गुप्ता
लगता है, मैं किसी ट्रेन में बैठी, अनगिनत देश, अनगिनत लोग, उनके स्वभाव-चरित्र, उनकी सोच से मिल रही हूँ और उनमें एकमेक होकर, अनगिनत भूमिकाएँ जी रही हूँ। ज़िन्दगी अनमोल है और जब वह शुभ औ
तसलीमा नसरीन ने अनगिनत पुरस्कार और सम्मान अर्जित किये हैं, जिनमें शामिल हैं-मुक्त चिन्तन के लिए यूरोपीय संसद द्वारा प्रदत्त - सखारव पुरस्कार; सहिष्णुता और शान्ति प्रचार के लिए यूनेस्को पुरस