यह पुस्तक तकषी शिवशंकर पिल्लै की एक रोचक आत्मकथा तो है ही-साथ ही उनकी कुछ और बेहतरीन कृतियाँ भी इस पुस्तक में संकलित हैं। तकषी की मृत्यु के एक माह बाद उनकी पत्नी ने एक टिप्पणी की थी। जो कि सिर्फ टिप्पणी नहीं है बल्कि नारी समाज की मार्मिक अभिव्यक्ति भी है।
मेरे जीवन में अब सिर्फ दुख ही दुख है। 65 साल की स्मृतियाँ हैं। शादी के अवसर पर मैं सोलह साल की लड़की थी। वे इक्कीस वर्षीय युवक थे। मैंने उनकी सेवा टहल करती रही। वे मुझे कात्ता पुकारते थे। आप सब लोगों ने सुना होगा। वे मुझे बार-बार कात्ता या कात्ताम्मा पुकारते थे। अंतिम दिनों में वे सिर्फ अम्माँ पुकारते थे।
अब भी मुझे लग रहा है कि वे मुझे बुला रहे हैं। कात्ता, कात्ता वाली पुकार सुनाई पड़ती है। रात बिताना मुश्किल लगता है। अगर नींद आती है तो थोड़ी देर बाद जाग उठती हूँ। फिर उनके बारे में सोचकर काफी देर तक बैठी रह जाती हूँ। उनके साथ बिताए दिनों की याद आती है। वे मेरा दायाँ हाथ थे। मेरा दायाँ हाथ नष्ट हो गया है। मैं अब अपनी मृत्यु के इंतजार में बैठी हूँ। मैं अब बुढ़िया हूँ। 82 साल की हो गई न ! मैं गिन-गिनकर दिन बिता रही हूँ। वे कभी भी मेरे स्वप्न में नहीं आते हैं। उनके जीवन काल में मैं उनकी स्थाई साथी थी।
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