Rishton Ki Pagdandiyan

Rekha Maitra Author
Hardbound
Hindi
8181431871
9788181431875
1st
2007
92
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खोना किसी भी चीज़ का हो, बड़े नुकसान की बात है। लेकिन कभी यूं भी होता है कि खोया हुआ कंचा जब पाया, तो उस गुत्थी से और -से कंचे निकल आएं। ऐसा ही कुछ बहुत- रेखा जी की कविताओं के साथ हुआ... चंद कविताएं मिली थीं कि मैं एक पेश - लफ़्ज़ लिख दूं। वो कविताएं मुझसे खो गईं और कुछ लिखा था, वो भी गुम हो गया। इस बीच अमरीका गया। तो न्यूयॉर्क में रेखा जी से मुलाकात हो गई। उनकी कविताएं उनकी ज़बान से सुनकर और ही मज़ा आया। मेरे लिए उन कविताओं की कद्र बढ़ गई। कविताएं अच्छी थीं ही। लेकिन उनमें रेखा जी का लहज़ा, आवाज़ और अंदाज़ भी शामिल हो गया। अब इन कविताओं को पढ़नेवाले उनकी आवाज़ तो न सुन सकेंगे। लेकिन उनके लहजे का अंदाज़ा वो उनके अलफ़ाज़ के चुनाव और बहर (मीटर) के बहाव से कर सकते हैं। वो बयक-वक़्त सरल भी हैं और मुश्किल भी। सरल इसलिए हैं कि उनकी उपमाएं रोज़मर्रा की जिंदगी से उठाई हुई हैं और मुश्किल इसलिए कि रोज़मर्रा की मामूली सी बात के पीछे वो कोई न कोई जिंदगी का बड़ा असरार (रहस्य) खोल देती हैं।

- गुलज़ार

रेखा मैत्र (Rekha Maitra)

रेखा मैत्र का जन्म बनारस (उ.प्र.) में हुआ। प्राथमिक शिक्षा बनारस में होने के बाद आपने सागर विश्वविद्यालय से हिन्दी साहित्य में एम.ए. किया। तदनन्तर, मुम्बई विश्वविद्यालय से टीचर्स ट्रेनिंग में

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