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Tinka Tinke Paas

Anamika Author
Paperback
Hindi
9788181438225
1st
2008
315
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₹200.00

अनामिका का यह उपन्यास 'तिनका तिनके पास' मुक्ति का अर्थ टटोलने की कोशिशों के गर्भ से जन्मा है। उनकी यह रचना इस अहम सवाल से जूझती है कि स्त्री की मुक्ति 'साल्वेशन' के तर्ज पर होगी या 'लिबरेशन' के तर्ज पर । कथाक्रम मुजफ्फरपुर के सदर अस्पताल और वेश्याओं के बच्चों के आवासीय स्कूल 'जोगनिया कोठी' से गुजरता हुआ स्त्री जीवन की कई व्यथित सच्चाइयाँ सामने लाता है।

इस कृति का एक पात्र कहता है, 'एक तरह की काल गर्ल हर औरत होती है-व्याहता गृहस्थिन भी-काल गर्ल को तो यह छूट भी होती होगी कि हर कॉल पर वह प्रस्तुत न हो, पर गृहस्थिन की क्या मजाल !' पत्नियाँ न जाने कितने अज्ञात भयों से बचने के लिए डॉट-मार के तुरन्त बाद पति के सामने देह बिछा देती हैं। फिर छत की शहतीरें गिनती हुई सोचती हैं कि शरीर के बदले घर की सुख-शान्ति तो हासिल कर ली पर मन की वितृष्णा कैसे पोंछी जाएगी।

इस उपन्यास में पाठकों को हिन्दी जगत के शीर्ष पुरुषों की तावेदारी में होने वाली दारू पार्टियों की झलक भी मिलेगी जिनमें दावा किया जाता है कि सब लेखिकाएँ उन्हीं मठाधीशों की लाइब्रेरी शयनकक्ष से निकली हैं। एक अवंतिका देवी हैं जिन्होंने मार्क्सवादी सांसद बनकर राजनीति में कामयाबी तो हासिल कर ली है, लेकिन पति के कॉमरेड बनने की प्रतीक्षा उनके लिए अन्तहीन ही हो गई है। उपन्यास में फिलासफर रामचन्द्र गाँधी भी आते हैं-तारा के दार्शनिक बहस करते हुए कथाक्रम सीधी रेखा में बढ़ने के बजाय आगे-पीछे जाता है। यह फ्लैशबैक नहीं है, बल्कि निकट इतिहास से वर्तमान में बाधारहित आवाजाही है।

अनामिका (Anamika )

साहित्य अकादेमी पुरस्कार तथा अन्य कई राष्ट्रीय एवं अन्तरराष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित अनामिका का जन्म 17 अगस्त, 1961 को मुजफ़्फ़रपुर, बिहार में हुआ। वे दिल्ली विश्वविद्यालय में अंग्रेज़ी की प

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