हम गुनहगार औरतें - यह सशक्त कविता-संग्रह परम्परागत प्रेम-कविता का अतिक्रमण है। पाकिस्तान की नारी-कविता उन तहज़ीबी, सामाजिक एवं राजनीतिक सन्दर्भों की अभिव्यक्ति है जो पाकिस्तान की सरहदों को पार करके एशिया की सामूहिक नारी-चेतना का प्रतीक बन गये हैं। उपमहाद्वीप की नारी की व्यथा, संघर्ष, द्वन्द्व और उसके विद्रोह का इज़हार नारी स्वर को वह गरिमा और वैभव प्रदान करता है जिसे हमारा समाज किसी भी तरह अनदेखा नहीं कर सकता। नारी-कविता किसी विचारधारा के अन्तर्गत लिखी गयी कविता नहीं। यह वास्तव में एक विद्रोह है उस सामाजिक एवं राजनीतिक व्यवस्था के प्रति जिसने नारी के सम्मान और उसके स्वर को कुचलना चाहा। पाकिस्तान की नारी आज भी भय और दमन के माहौल में जी रही है।
ये हम गुनहगार औरतें हैं जो अहल-ए-जुब्बा की तमकनत से न रोब खायें न जान बेचें न सर झुकायें न हाथ जोड़ें ये हम गुनहगार औरतें हैं कि जिनके जिस्मों की फ़सल बेचें जो लोग वो सरफ़राज़ ठहरें नयाबते इम्तयाज़ ठहरें वो दावेर अहले साज़ ठहरें
ये हम गुनहगार औरतें हैं कि सच का परचम उठाके निकलें तो झूठ से शाहराहें अटी मिले हैं हर एक दहलीज़ पे सज़ाओं की दास्तानें रखी मिले हैं जो बोल सकती थीं वो ज़बानें कटी मिले हैं
ये हम गुनहगार औरतें हैं कि अब तआकुब रात भी आये तो ये आँखें नहीं बुझेंगी कि अब जो दीवार गिर चुकी है। उसे उठाने की ज़िद न करना !
ये हम गुनहगार औरतें हैं जो अहले जुब्बा की तमकनत से न रोब खायें न जान बेचें न सर झुकायें, न हाथ जोड़ें! -किश्वर नाहीद