अपने अपने अजनबी - 'मृत्यु से साक्षात्कार विषय बनाकर को मानव के जीवन और उसकी नियति का इतने कम शब्दों में मार्मिक और भव्य विवेचन इस उपन्यास की गरिमा का मूल है। मृत्यु को सामने पाकर कैसे प्रियजन भी अजनबी हो जाते हैं और अजनबी पहचाने हुए इस चरम स्थिति में मानव का सच्चा चरित्र उभरकर आता है उसका प्रत्यय, उसका अदम्य साहस और उसका विमल अलौकिक प्रेम भी वैसे ही और उतने ही अप्रत्याशित ढंग से क्रियाशील हो उठते हैं, जैसे उसकी निम्नतर प्रवृत्तियाँ। 'अपने-अपने अजनबी' के पात्र विदेशी हैं और कहानी भी विदेश में घटित होती है। मृत्यु के प्रति जिन दो विरोधी भावों की टकराहट इनमें है, वास्तव में उनके पीछे पूर्व और पश्चिम की जीवन-दृष्टियाँ हैं। वे दो दृष्टियाँ ही यहाँ मिलती हैं और मानव-जीवन के एक नये आयाम का उन्मेष करती हैं। प्रस्तुत है कृति का यह नवीनतम संस्करण।
Log In To Add/edit Rating
You Have To Buy The Product To Give A Review