महामति प्राणनाथ (1618-1694 ई.) जन्म का नाम मेहराज ठाकुर । पिता श्री केशव ठाकुर और माता धनबाई की सन्तान । सुदूर गुजरात के जामनगर में पैदा हुए मेहराज का बारह वर्ष की उम्र में ही सद्गुरु देवचन्द्र के आध्यात्मिक ज्ञान के प्रति लगाव तथा उनसे तारतम मन्त्र की दीक्षा प्राप्त । देवचन्द्र जी के धामगमन के उपरान्त प्रणामी धर्म की बागडोर सँभालते हुए भारत तथा अरब देशों का भ्रमण । अपने अनुयायियों एवं सुन्दर साथ के बीच जागनी अभियान और तारतम का प्रसार । विभिन्न सम्प्रदायों, अखाड़ों, संकीर्ण गुटों और मतवाद के भँवर से निकालकर पूरी मानवता को बृहत्तर मानव धर्म और एकेश्वरवाद का सन्देश । व्यक्तिगत मोक्ष का मोह या सिद्धि की आसक्ति त्यागकर सामूहिक जागनी पर सर्वाधिक जोर । अपने वाणी-संग्रह तारतम बानी या कुलजम स्वरूप में वेद और कतेब पक्ष के सन्देशों एवं अवधारणाओं को व्यापक अनुभव की कसौटी पर परखकर और आतम साखी से पुष्ट कर पूरी मानवता के लिए अखिल विश्व का आह्वान और एक नये सूर्योदय की मंगलपूर्ण भविष्यवाणी ।
महामति के सक्रिय चिन्तन का मूल स्वर है, आत्मा में परमात्मा के मिलन का आनन्द । इस चिन्मय मिलन उत्सव को महामति ने अपने वाङ्मय में शताधिक बार दोहराया है। इस परम आयोजन की आकांक्षा उनके जीवन, चिन्तन एवं दर्शन में विभिन्न अवसरों एवं प्रसंगों पर प्रकट वाणियों द्वारा पुष्ट और समृद्ध हुई । तारतम बानी में संकलित श्रीरास (इंजील), कलश (जम्बूर), प्रकाश (तोरेत), सनंध (कुरान), किरंतन, खुलासा, खिलवत, सागर, सिन्धी वाणी से लेकर मारफत सागर और कयामतनामा (बड़ा और छोटा) तक, उनके अन्तर में उतरी यह अमृत बानी समस्त मानव समुदाय के लिए नये सन्देश के साथ व्यंजित होती गयी-कभी किसी भूले-बिसरे आख्यान में ढलकर, कभी नये रूपकों से पुष्ट होकर और कभी प्राचीन मिथकों से समृद्ध होकर ।
महामति प्राणनाथ ने उत्तर मध्यकाल में प्रचलित भारतीय धर्मसाधना और अध्यात्म दृष्टि के साथ उसकी समन्वयी भावधारा को गतिशील ढंग से प्रभावित और आस्थावान समाज को अनुप्राणित किया। लक्ष्य के प्रति समर्पित और जुझारू महामति के व्यक्तित्व में, उनके ओजपूर्ण स्वर और भव्य स्वरूप में, उनके अनुयायियों और सुन्दरसाथ ने परब्रह्म परमात्मा की दिव्य ज्योति का आभास पाया था । ऐतिहासिक तौर पर जामनगर (गुजरात) में एक दीवान के घर उत्पन्न मेहराज ठाकुर को समय-समय पर और विभिन्न स्थानों पर अवतरित शक्तियों के समुच्चय के रूप में देखा गया। इस कालजयी मनीषा को 'महामति प्राणनाथ' की संज्ञा और ‘विजयाभिनन्द निष्कलंक बुध' की उपाधि भी मिली। लोक चित्त के अनुरूप ढले उनके व्यक्तित्व और कृतित्व में हम विभिन्न आस्थाओं एवं आम्नायों के साथ, इन सबमें निहित परम चिन्मय सत्ता का आभास पा सकते हैं।
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