• Out Of Stock

Faiz Ki Sadi

Author
Paperback
Hindi
9788126330508
1st
2011
112
If You are Pathak Manch Member ?

₹60.00

फ़ैज़ की सदी

आस उस दर से टूटती ही नहीं
जाके देखा न जाके देख लिया।

- फ़ैज़ अहमद 'फ़ैज़'

फ़ैज़ उर्दू अदब के उन चन्द आधुनिक साहित्यकारों में से एक हैं जिनको विश्व स्तर पर बेपनाह मुहब्बत, शोहरत और इज़्ज़त हासिल हुई। फ़ैज़ की ग़ज़लों और नज़्मों ने ज़बान-ओ-मुल्क की सरहदें तोड़ दीं। 'प्रेम' शब्द में जगमगाते सारे रंग, 'इन्कलाब' के भीतर समायी सारी बेचैनियाँ और 'इन्सानियत' में मौजूद सभी जीवन-मूल्य फ़ैज़ की शायरी में एक बेमिसाल अर्थ पाते हैं। 'फ़ैज़ की 'सदी' पुस्तक इन्हीं विशेषताओं पर मानीख़ेज़ रौशनी डालती है।

'फ़ैज़ की सदी' में फ़ैज़ की कुछ चुनिन्दा और बेहद मक़बूल ग़ज़लें व नज़्में हैं। फ़ैज़ का एक भाषण, उनके द्वारा की गयी ग़ालिब की एक ग़ज़ल की व्याख्या, पत्नी व बच्चों के नाम उनके ख़ुतूत और उनका एकांकी 'प्राइवेट सेक्रेटरी' इस पुस्तक का महत्त्वपूर्ण हिस्सा हैं। फ़ैज़ के रचना-संसार पर विजयमोहन सिंह, परमानन्द श्रीवास्तव और अली अहमद फ़ातमी के आलेख रचना और जीवन के अबूझ रिश्तों की गिरह सुलझाते हैं। मजरूह सुल्तानपुरी ने ठीक ही कहा था कि "फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ तरक़्क़ीपसन्दों के 'मीर तक़ी मीर' थे।" हमारे समय के 'मीर' यानी फ़ैज़ के परस्तारों के लिए एक नायाब तोहफ़ा है यह पुस्तक ।

- सुशील सिद्धार्थ

रवीन्द्र कालिया (Ravindra Kalia)

रवीन्द्र कालिया जन्म : जालन्धर, 1938निधन : दिल्ली, 2016रवीन्द्र कालिया का रचना संसारकहानी संग्रह व संकलन : नौ साल छोटी पत्नी, काला रजिस्टर, गरीबी हटाओ, बाँकेलाल, गली कूचे, चकैया नीम, सत्ताइस साल की उम

show more details..

My Rating

Log In To Add/edit Rating

You Have To Buy The Product To Give A Review

All Ratings


No Ratings Yet

Related Books