Chitthiyon Ke Din

Paperback
Hindi
9789387648937
2nd
2021
222
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निर्मल वर्मा जितना मौन पसन्द थे, उतना ही संवाद- प्रिय- इसे मानने के पर्याप्त कारण हैं, विशेषकर उनके पत्रों की इस तीसरी पुस्तक के अवसर पर। एक आत्मीय स्पेस में लिखे गये ये पत्र अलग-अलग व्यक्तियों को लिखे जाने के बावजूद पारिवारिक ऊष्मा लिये हुए हैं।

निस्संग रहते हुए भी निर्मल कितना दूसरों के संग थे, उनकी व्यावहारिक परिस्थितियों से ले कर उनकी सर्जनात्मक आकुलता तक, ये पत्र इसके साक्षी हैं। अधिकतर ये पत्र, विशेषकर रमेशचन्द्र शाह और ज्योत्स्ना मिलन के नाम, सन् अस्सी के दशक में लिखे गये पत्र हैं। यह वह दूसरी दुनिया थी, जो देखने पर बाहर से दिखायी नहीं देती। इसमें उनका अकेलापन था और अपनी व्यक्तिगत लेखकीय नियति का सामना करने की तैयारी ।

निर्मल वर्मा आज यदि अलग दिखते हैं, तो अपने जीने या सहने में नहीं। इस सब जंजाल के जो अर्थ वह अपने लेखन से दे पाये उसमें। मित्रों से बहस करना उनका पैशन था। जब ये बहसें रू-ब-रू नहीं हो पाती थीं, तो पत्रों चली आती थीं। दूसरों से संवाद में ही जीवन का यह अति-यथार्थ सँभल पाता है, सहनीय हो पाता है ये पत्र इसका दस्तावेज़ है । निर्मल वर्मा के शोधार्थियों और पाठकों को इन पत्रों में उनके रचना संसार के कई नये अन्तःसूत्र मिलेंगे, ऐसा निश्चित है।

गगन गिल (Gagan Gill )

सन् 1983 में ‘एक दिन लौटेगी लड़की’ कविता शृंखला के प्रकाशित होते ही गगन गिल (जन्म: 1959, नयी दिल्ली, शिक्षा: एम. ए. अंग्रेज़ी साहित्य) की कविताओं ने तत्कालीन सुधीजनों का ध्यान आकर्षित किया था। तब से अब तक

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निर्मल वर्मा (Nirmal Verma )

निर्मल वर्मा (1929-2005) भारतीय मनीषा की उस उज्ज्वल परम्परा के प्रतीक-पुरुष हैं, जिनके जीवन में कर्म, चिन्तन और आस्था के बीच कोई फाँक नहीं रह जाती। कला का मर्म जीवन का सत्य बन जाता है और आस्था की चुनौत

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