बूँद बूँद बतरस
हिन्दी के शीर्षस्थ लघुकथाकार और 'लघुकथा सम्राट' संज्ञा से विभूषित रचनाकार कीर्तिकुमार सिंह का छठा लघुकथा-संग्रह है बूँद बूँद बतरस ।
लघुकथा कहना अपने आप में एक कला है, क्योंकि इसमें जीवन के किसी भी क्षेत्र के एक छोटे से अंश को लेकर पूरा ताना-बाना बुना जाता है। कीर्तिकुमार सिंह इस क्षेत्र में सिद्धहस्त और सफल हैं। वे अपने चारों तरफ़ घट रही घटनाओं पर बारीक नज़र रखते हैं। यही वजह है कि जिन घटनाओं और घटनाओं से उत्पन्न स्थितियों पर हमारी आपकी नज़र भी नहीं पड़ती, लेखक उसे खींचकर कथा का केन्द्र बना देता है। वह अपनी कथा- भाषा द्वारा उस घटना को इस प्रकार प्रस्तुत करता है कि लोग उसमें कभी अपनी तो कभी अपने जान-पहचान के लोगों की छवि देखने लगते हैं। उसकी लेखनी की लपेट में कभी-कभी उसके 'अपने' आते हैं तो कभी 'पराये', लेकिन बिना पक्षपात लेखक दोनों पर ऐसा व्यंग्यपूर्ण कटाक्ष अपने चुहलभरे अन्दाज़ में करता है कि पाठक को जहाँ पढ़ने का पूरा मज़ा मिलता है, वहीं वह कहीं न कहीं स्वयं भी उस वातावरण में पहुँच जाता है।
इन सबके बावजूद कीर्तिकुमार सिंह की लघुकथाओं का नायक कोई विशिष्ट व्यक्ति नहीं, बल्कि वही 'कॉमन मैन' है जो हमारे- आपके आस-पास है और घटनाएँ भी वही हैं जो लोगों के जीवन में कभी न कभी घटित होती रहती हैं। कीर्तिकुमार सिंह की लघुकथा महज़ एक युगीन वक्तव्य नहीं बल्कि ईमानदारी से समाज एवं व्यक्ति के भावों को पकड़ने का एक सफल प्रयास है।
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