भारत की राजभाषा होने के कारण हिन्दी भाषा को नये आयाम मिले हैं और उनके दायित्व-क्षेत्र का विस्तार भी हुआ है। यानी सिर्फ साहित्य तक सीमित न रहकर हिन्दी ज्ञान-विज्ञान की भाषा बनी और उसके व्यावहारिक तथा प्रयोजनमूलक स्वरूप को मूल्य- महत्त्व भी मिला। लेकिन, बड़ी आवश्यकता हिन्दी भाषा के इस स्वरूप को सार्थक रूप से रेखांकित करने की रही है। डॉ. गोस्वामी की यह पुस्तक इसी दिशा में एक गम्भीर प्रयत्न है।
पुस्तक में दो खंड हैं- 'व्यावहारिक हिन्दी' और 'रचना' । पहले खंड में अनुवाद, प्रारूपण और टिप्पणी लेखन, पारिभाषिक शब्दावली आदि पर विस्तृत जानकारी दी गयी है और दूसरे खंड में पत्र-लेखन और निबंध लेखन जैसे सर्जनात्मक विषयों का प्रक्रियात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया गया । कहना न होगा कि इसी कारण पुस्तक विद्यार्थियों और कार्यालयों के हिन्दी-प्रेमी कर्मचारियों के लिए समान रूप से उपयोगी बन पड़ी है ।
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