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Bazar Mein Ramdhan

Paperback
Hindi
8126309857
1st
2004
164
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₹65.00

बाज़ार में रामधन - कैलाश बनवासी की कहानियाँ हमारे आस-पास और निपट वर्तमान की यथार्थपरक कहानियाँ होते हुए भी उन सपनों को बचाये रखने की भरसक कोशिश करती हैं जिन्हें धनतान्त्रिक शक्तियाँ हमसे छीन लेना चाहती हैं। ये उस आम आदमी की कहानियाँ हैं जो अमूमन प्रचार का हिस्सा नहीं बनते लेकिन देश के विकास में सक्रिय भागीदारी निभाते हैं। कहा जा सकता है कि यह अनायकों के साहस की कहानियाँ हैं। ये कहानियाँ संस्मरणात्मक भी हैं और संघर्षात्मक भी। इनमें प्यार की कोमलता भी है तो जीवन संघर्षों की कठोरता भी। दिनों-दिन साधारण मनुष्य के अधिकार की आवाज़ के लगातार कमज़ोर होते जाने और उसे हाशिये पर कर दिये जाने की कई छवियाँ इन कहानियों में मौजूद हैं, जो किसी भी संवेदनशील पाठक को विचलित कर सकती हैं। आज हमारा पूरा समाज और संस्कृति बाज़ार की शक्तियों के हवाले है, जहाँ साधारण आदमी की वेदनाओं और मूल्यों के लिए जगह नहीं बची। 'बाज़ार में रामधन', 'लोहा और आग...' या 'एक गाँव फुलझर' जैसी कहानियाँ ऐसे ही लोगों की त्रासदी और नियति से जूझती हुई स्थितियों के बदलाव का स्वप्न लिये हुए हैं। ये कहानियाँ न सिर्फ़ पठनीय हैं बल्कि इधर की अधिकांश कहानियों से अपनी अलग पहचान भी बनाती हैं।

कैलाश बनवासी (Kailash Banavasi)

कैलाश बनवासी - जन्म: 18 मार्च, 1965, दुर्ग में। शिक्षा: एम.ए. (अंग्रेज़ी साहित्य)। कृतियाँ: 'लक्ष्य तथा अन्य कहानियाँ', समसामयिक विषयों पर कुछ लेख व समीक्षाएँ। पुरस्कार सम्मान: कहानी 'कुकरा कथा' पर 'कहा

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