आज हम एक ऐसे कठिन समय में जी रहे हैं जहाँ कोमलता, सुन्दरता और संवेदनशीलता को बचाये रखना कितना कठिन लेकिन लाजिमी है, मधु कांकरिया के नये कहानी संग्रह 'चिड़िया ऐसे मरती है' की कहानियाँ इसकी बानगी हैं। चिड़िया कोमल होती है। पशु-पक्षी, प्रकृति की सुन्दरता और मनुष्य के कोमल भावों पर आज चौतरफा खतरे मँडरा रहे हैं। सत्ता, पूँजी, बाजार, विचारधारा और राष्ट्र राज्य के दमन व उत्पीड़न से रोज-रोज ये नष्ट हो रहे हैं, मर रहे हैं। मधु कांकरिया की जिद इन्हें बचाये रखने की है। ताकि मनुष्यता और सभ्यता बची रहे।
आज विचारधारा और राजनीति सत्ता हथियाने के साधन मात्र रह गये हैं। ऐसे समय में वैचारिक स्टैंड के साथ रचनाकर्म कठिन हो गया है। संग्रह की कहानियाँ इसकी मिसाल हैं। इन कहानियों में लेखिका अपने राजनीतिक स्टैंड के साथ सामने आती हैं और वैचारिक हस्तक्षेप करती हैं। वे प्रेम, सत्ता, समाज, राष्ट्र, धर्म और अन्य क्षेत्रों में व्याप्त रूढ़ियों और अन्धविश्वासों को पहचानती हैं। सत्ता, व्यवस्था, समाज और सम्बन्धों की संवेदनशीलता को बचाये रखने का आग्रह करती हैं। इन कहानियों में मधु कांकरिया ने प्रेम और धर्म से लेकर नक्सलवाद तक, तमाम मसलों की बारीकियों को बड़ी शिद्दत से पिरोया है। देश में नक्सलवाद को लेकर छिड़ी बहस के बीच लेखिका ने नक्सलवाद को आधार बनाकर संवेदनशील आख्यान रचा है। लेकिन मधु कांकरिया का लेखन सिद्धान्त से नहीं जीवन की व्यावहारिकता से निकलकर सामने आया है।
कुछ कहानियों में लेखिका के स्त्री सशक्तीकरण सम्बन्धी दृष्टिकोण का भी खुलासा है। उन्होंने सामन्ती पितृसत्तात्मक समाज और धर्म से स्त्री की मुक्ति को वैचारिक आधार दिया है। वह शरीर की मुक्ति में ही नारी की मुक्ति नहीं देखतीं बल्कि धर्म से स्त्री की मुक्ति की बात उठाती हैं। कई कहानियों में सभी धर्मों के दकियानूसीपन को उजागर किया गया है।
कुल मिलाकर कहें तो मधु कांकरिया की कहानियाँ कोरी कल्पना की उपज नहीं बल्कि जीवन संघर्षों से निकली कहानियाँ हैं। ये कहानियाँ जमीनी हकीकत बयान करती हैं। शिल्प के लिहाज से कई कहानियों में आख्यान की बुनावट के नये-नये प्रयोग किये गये हैं इसलिए पढ़ते हुए पाठक को भौचक्का भी कर देती हैं ये कहानियाँ।
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