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Hatheli Par Khili Dhoop

Sanjay Parikh Author
Hardbound
Hindi
9789357750141
1st
2023
148
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कविता तो अपने को देखने और अन्तः सौन्दर्य को बढ़ाते जाने का एक प्रयत्न भर है। जैसे-जैसे दृष्टि समग्रता की ओर बढ़ती है वैसे-वैसे जीवन सुगठित होता है और कविता प्रखर होती जाती है। समाज का, व्यक्ति का, उसके स्वभाव का, चिन्तन का, प्रकृति का - सारी संसृति का कहीं एक बिन्दु पर जुड़ाव है। वहीं से प्रेम, करुणा, सौन्दर्य तो कभी विद्रोह के स्वर जन्म लेते हैं। भाव कैसा भी हो पर जब सृजन में वह जुड़ाव परिलक्षित होता है तो उसमें एक निरन्तरता और सुन्दरता स्वमेव आ जाती है। कोई उस बिन्दु को ईश्वर का रूप मानता है तो कोई सृजनात्मक चेतना का स्रोत! उसी स्रोत से जन्मी कविता किसी भी काल में पुरानी नहीं होती। हर पीढ़ी उन कविताओं से ऊर्जा पाती है, प्रेरणा पाती है, आनन्द पाती है।

इन कविताओं में दोपहर है, धूप है, छत की मुँडेर है, स्वप्न हैं, मन है, कल्पनाएँ हैं और देखने या देख न पाने की विवशता है। क्यूँ बावरी हवा का आनन्द भीतर समाहित नहीं हो पाता, इसका दुख है। मुझे बड़ा कठिन लगता है कि कैसे जीवन के हर क्षण में साथ रहते और दिखते, प्रकृति के विभिन्न पदार्थों, रूप और गन्ध के नये-नये आयामों को, कविता-सृजन से बाहर रखा जा सकता है। चाँद, सूरज, पेड़, झरने, पहाड़, समुद्र, नदी आदि-आदि साथ चलते-चलते जीवन का अभिन्न हिस्सा बन जाते हैं। इनका प्रयोग शाब्दिक रूप से या प्रतीकों के माध्यम से बार-बार कविताओं में आता रहता है। मेरे लिए इनसे दूर हो पाना असम्भव है। स्वयं का सृजन के साथ यह जुड़ाव कविताओं का अभिन्न अंग बन गया है। शायद इस जुड़ाव का गहन होना ही नयी क्रियात्मकता, नयी कल्पनाओं, रचनाओं को जन्म देता है । कवि जब इस सृजनात्मक स्रोत से बँध जाता है तो जान जाता है कि कवि धर्म क्या है और क्यूँ वही चाँद, वही नदी का किनारा, वही गुलाब का फूल समय परिवर्तन के साथ एक नये । अनुभव को जन्म देता है।

संजय पारिख (Sanjay Parikh)

Sanjay Parikh

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