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संड्क्षिप्तनाट्यशास्त्रम्क -
भरत का नाट्यशास्त्र सदियों से हमारे वाङ्मय का एक गौरव ग्रन्थ रहा है। संगीत, चित्रकला और साहित्य के मिश्रण से एक चौथी विधा -नाटक- के आविष्कार ने शिक्षा, मनोरंजन और ज्ञान की एक सर्वथा नयी विधा को जन-जन के सामने प्रस्तुत किया। हम कह सकते हैं कि नाटक ने मंच पर एक नये ब्रह्माण्ड ही की सृष्टि कर डाली। अकारण नहीं है कि नाट्यशास्त्र को पाँचवें वेद की संज्ञा दी गयी।
नाट्यशास्त्र पर सरसरी निगाह से भी नज़र डालें तो हम चमत्कृत रह जाते हैं, क्योंकि इसमें समूचे रंग कर्म का ऐसा विविध और विस्तृत लेखा-जोखा है जो अन्य शास्त्रों में एक स्थान पर दिखाई नहीं देता। लेकिन आम तौर पर समूचे नाट्यशास्त्र से बहुत कम लोगों का सम्बन्ध रहता है। यही कारण है कि इस पुस्तक में डॉ. राधावल्लभ त्रिपाठी ने बड़े कौशल के साथ नाट्यशास्त्र के उन अंशों का एक सम्पादित संस्करण तैयार किया है जो रंगकर्मियों और नाट्यशास्त्र के अध्येताओं के मतलब का है। अर्थात, नाट्यशास्त्र जिनके लिए रचा गया है, उन्हें वह सुलभ हो सके। इस उद्देश्य से डॉ. राधावल्लभ त्रिपाठी ने सभी मूल अवधारणाओं, प्रयोग की प्रविधियों और भरत की रंग-दृष्टि को इस संक्षिप्त नाट्यशास्त्र में प्रामाणिक रूप से प्रस्तुत किया है। इस पुस्तक की एक विशेषता यह है कि मूल पाठ के साथ-साथ उसका सहज-सरल भाषा में अनुवाद भी दे दिया गया है और साथ में जहाँ आवश्यक समझा गया है वहाँ मुद्राओं आदि के चित्र भी दे दिये गये हैं जिससे पुस्तक का महत्व बहुत बढ़ गया है। आशा है कि इस पुस्तक से रंग कर्मी ही नहीं सामान्य रंग-प्रेमी भी लाभान्वित होंगे।
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