Jhund Se Bichura

Paperback
Hindi
9788181436825
1st
2008
104
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झुण्ड से बिछुड़ा - प्रसिद्ध कथाकार विद्यासागर नौटियाल का उपन्यास 'झुण्ड से बिछुड़ा' पर्वतीय जन-जीवन की त्रासदी को बड़े ही विश्वसनीय ढंग से उजागर करता है—विशेषकर गढ़वाली ग्रामीणों के संघर्ष और उनकी अदम्य जिजीविषा को लेखक ने तमाम प्रचलित मिथकों, किंवदन्तियों, रूढ़ियों, अन्धविश्वासों को सामने रखते हुए एक नयी कथाशैली और प्रविधि के साथ उपन्यास में प्रस्तुत किया है, जो अपने आप में नये जीवन के द्वार खोलने जैसा है। बेशक 'झुण्ड से बिछुड़ा' लघु उपन्यास है लेकिन इसके कथ्य का फलक विस्तृत है। कथा के केन्द्र में जहाँ 'शान्ति' जैसी निरुपाय और निस्सहाय एक पहाड़ी महिला है, जिसे अपनी गाय और 'भोली' बछड़ी के प्रति अपार वात्सल्य है तो दूसरी ओर है एक भयानक बाघ, जिसके रूप में मानो काल ही जंगल में घूमता रहता है। उपन्यास में मुख्य कहानी के इर्द-गिर्द फैला पहाड़ी जीवन ही नहीं, बाघ के आतंक से लोगों को सुरक्षा देते पात्रों का दुर्दम्य साहस भी चित्रित है। वहाँ के आम जीवन में बाघ एक पहाड़ी मिथक भी है और हक़ीक़त भी। श्रीधर प्रसाद जैसे पात्र भी पहाड़ी समाज में बाघ जैसे ही हैं। सत्ता और नौकरशाही के आतंक को जिस तरह उपन्यास की विषयवस्तु के साथ पिरोया गया है उससे यह कृति इस पूरे ताने-बाने का जीवन्त पाठ बन जाती है। भारतीय ज्ञानपीठ 'झुण्ड से बिछुड़ा' उपन्यास प्रस्तुत करते हुए आशा करता है कि अपनी यह विषयवस्तु और नये कथाशिल्प से पाठकों को आकर्षित करेगा।

विद्यासागर नौटियाल (Vidyasagar Nautiyal )

विद्यासागर नौटियाल  जन्म: 29 सितम्बर, 1933 (टिहरी गढ़वाल में, भागीरथी के तट पर बसे मालीदेवल में)। शिक्षा: रियासत के विद्यालयविहीन सुदूर जंगलों में अपने घर पर। बाद में टिहरी, देहरादून तथा काशी हिन्

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