Hindi Kahani : Antrang Pahchan

Hardbound
Hindi
9788181436498
2nd
2014
184
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हिन्दी कहानी : अन्तर पहचान -
हिन्दी कहानी की नब्बे वर्षों की यह यात्रा बहुत महत्त्वपूर्ण कही जा सकती है। परिवेशगत यथार्थ के साथ गहरी सम्पृक्ति, प्रवृत्तिगत वैविध्य और कलात्मक उपलब्धि सभी दृष्टियों से यह यात्रा आश्वस्तिकारी है। मनोरंजन के साधन के रूप में ली जाने वाली कहानी भारतीय सन्दर्भ में सदैव मानवीय उद्देश्य से प्रेरित रही। सचेत स्तर पर भले ही इधर आकर कहानी विधा को जटिल यथार्थ की अभिव्यक्ति का साधन बनाया गया हो किन्तु भारतीय साहित्य में सहज ही वह वृहत्तर उद्देश्य से प्रेरित रही है। वह मानव और मानवेतर पात्रों के माध्यम से मानव जीवन के सत्यों को उद्घाटित करती हुई ग्राह्य और त्याज्य का विवेक पैदा करती रही है।
अपने आधुनिक रूप में कहानी निश्चित ही श्चिम से आयी है किन्तु हिन्दी कहानी ने केवल इसके रूप को लिया : चेतना या संवेदना अपने समाज से ही ग्रहण की। प्रेमचन्द-पूर्व की कहानियों को बहुत गम्भीरता से नहीं लिया जाता किन्तु उनमें भारतीय जीवन के आदर्शों की आहट स्पष्ट है।
यद्यपि पश्चिम और पूरब में अन्य विधाओं की तरह कहानी को भी परिभाषाओं में बाँधने की कोशिश की गयी है और उसे कुछ तत्त्वों में विभाजित कर उसके शिल्प को सामान्यीकृत करने की कोशिश की गयी है किन्तु वह बँधी नहीं। कथा साहित्य अपने आधुनिक रूप में नयी विधा है। नाटक और कविता की अपेक्षा उसकी शिल्पगत सम्भावनाएँ अधिक खुली हुई हैं, दूसरे यह वह जनसामान्य के जीवन-यथार्थ से जुड़ी हुई विधा है।
जनसामान्य का जीवन-यथार्थ एक तो अपने आप में बहुआयामी है, दूसरे निरन्तर विकसित होता रहता है। इसलिए कथाकार के सामने इस यथार्थ से संवाद करने वाले शिल्प के निर्माण की चुनौती बराबर बनी होती है। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने बहुत पहले इस सत्य को पहचान लिया था और उन्होंने प्रेमचन्द की कहानियों में कहानी की नयी सँभावनाएँ पहचानते हुए उन्हें पश्चिमी कहानियों से अलग किया था।
रोज़ नये-नये प्रयोगों को देखकर लुभा जाने वाला और लेखक विशेष के सन्दर्भ में शिल्प के, तथा लेखक विशेष के सन्दर्भ में संवेदना के सौन्दर्य का समर्थन करने के लिए विकृत तर्कवाद का शिकार हो जाने वाला आलोचक संवेदना और शिल्प के सही सम्बन्धों की पहचान करने-कराने के स्थान पर उसके बीच नकली फासला ही बनता है।

रामदरश मिश्र (Ramdarash Mishra)

जन्म : 15 अगस्त, 1924 को गोरखपुर ज़िले के डुमरी गाँव में। काव्य : पथ के गीत, बैरंग-बेनाम चिट्ठियाँ, पक गई है धूप, कन्धे पर सूरज, दिन एक नदी बन गया, मेरे प्रिय गीत, बाज़ार को निकले हैं लोग, जुलूस कहाँ जा रहा ह

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