Sham Hone Wali Hai

Shaharyaar Author
Paperback
Hindi
9788181433381
112
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बात कुछ यों है... दूरियाँ कुर्ब लगें, कुर्ब में दूरी निकले उम्र भर मुझको यही कारे-अजब करना है। कविता कुछ और करे या न करे, वह अक्सर भाषा को वहाँ ले जाती है जहाँ वह पहले न गयी हो। यह नयी और अप्रत्याशित जगह हमारे सामने ख़ुद हमें और दुनिया से हमारे रिश्ते को उजागर करती है। कविता अपने आस-पास, सचाई में हमारी शिरकत और उनकी समझ बढ़ाती है। हम कुछ ज़्यादा ध्यान से सुनते, कुछ ज़्यादा तफ़सील में देखते, कुछ ज़्यादा शिद्दत से महसूस करते हैं। कविता हमें जताती है कि दुनिया हमें पूरी तरह से बनी-बनायी नहीं मिली है, उसे कुछ हम भी रचते-बनाते हैं। यह भी कि दुनिया ठोस तो है लेकिन सपनों, यादों, चाहतों, उम्मीदों, नाउम्मीदी वगैरह से भी मालामाल है। कविता और साहित्य वे विधाएँ हैं जो लगातार अपने सच पर शक करती हैं। इसीलिए अक्सर शेख या पण्डित कवि नहीं होते। उर्दू कवि शहरयार की कविता में वे सारे गुण और पहलू हैं जिनका ज़िक्र ऊपर है। दूर को पास लाने और पास को दूर ले जाने की हिकमत उन्हें खूब आती है। उनकी कविता बड़े सवाल पूछती है मगर उनका हौआ नहीं खड़ा करती : अब एक हम हैं, हमारे तवील साये हैं। कोई बताओ कि दुनिया में पेश्तर क्या था। अब जिधर देखिये लगता है कि इस दुनिया में कहीं कुछ चीज़ ज़्यादा है कहीं कुछ कम है

महताब हैदर नक़वी (Mehtab Haidar Naqvi )

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शहरयार (Shaharyaar)

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