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समय के पाँव - स्वाधीनता आन्दोलन भारतीय समाज के साथ हो सम्पूर्ण विश्व की अत्यन्त महत्वपूर्ण परिघटनाओं में से एक है। इस अर्थ में भी कि एक राष्ट्र (भारत) जहाँ अपनी मानसिक गुलामी के ख़िलाफ़ लामबन्द हो रहा था, वहीं पूरी दुनिया के लिए सजग जीवन सिद्धान्तों और संघर्षों की नयी पटकथा भी लिख रहा था। भारत को जिन महत्त्वपूर्ण विभूतियों ने अपने दुर्धर्ष जीवन संघर्ष और वैचारिक साहस से भारतीय उदासीन समाज को सतर्क और संस्कारित किया, उन्हीं को कार्य प्रणाली एवं जीवनादशों का आत्मीय विवेचन है प्रस्तुत पुस्तक 'समय के पाँव'। लेखक ने इस पुस्तक में लोकमान्य तिलक, महात्मा गाँधी, सुभाषचन्द्र बोस, विट्ठल भाई पटेल, गणेश शंकर विद्यार्थी, विनोबा भावे, प्रेमचन्द, पं. रविशंकर शुक्ल, मवाला, डॉ. अंसारी, मैथिलीशरण गुप्त, आचार्य रामचन्द्र शुक्ल, जयशंकर प्रसाद, सुमित्रानन्दन पन्त, सुभद्राकुमारी चौहान, काशीप्रसाद जायसवाल, ठाकुर लक्ष्मण सिंह चौहान, भगत सिंह, रवीन्द्रनाथ टैगोर, पं. मोतीलाल नेहरू और राजर्षि टंडन के अपरिमित योगदान को सरलता से रेखांकित किया है। इस पुस्तक का महत्त्व उपयुक्त प्रसंग से इतर एक अलग आयाम प्राप्त कर लेता है जब पाठकों को समाज के विभिन्न क्षेत्रों में सक्रिय व्यक्तियों के उद्देश्यों और दायित्वों का अधिकांश अपरिचित अन्तरा यहाँ सुलभ होता है। भारतीय ज्ञानपीठ की 'पुनर्नवा श्रृंखला' के अन्तर्गत इस बहुप्रतीक्षित पुस्तक को 'स्वाधीनता आन्दोलन की प्रक्रिया और प्रबोध के प्रामाणिक साक्ष्य' के रूप में प्रकाशित करते हुए सन्तोष हो रहा है।
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