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Jharte Hain Taare Jis Maati Par

Hardbound
Hindi
9788126314522
3rd
2016
64
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₹100.00

झरते हैं तारे जिस माटी पर - इस प्राचीनतम या कालातीत देश 'भारतवर्ष' के ध्यान और सपने में गुँथी हुई हैं असंख्य स्मृतियाँ। इस अमरभूमि ने याद रखा है बोधिवृक्ष को; रक्तरंजित तलवार के वार से हुई अनगिनत मृत्युओं को; छप्पर उघड़े घर में भूखे पेट जीवन के आवाहन को; शान्त पर्वत पर ध्यानमग्न ऋषियों को। इसने याद रखा है सारे स्नेह, सारी शत्रुता, सारी रुलाई, सारी मुस्कानों को; सारी शून्यताओं और परिपूर्णताओं को भी। जब से कवि ने होश सँभाला है, इस धरती को प्यार किया है। इसी धरती की ही तो वह गमकती माटी है जिसपर झरते रहते हैं तारे। वही माटी, जिसकी गोद में हवा झूला झुलाती है शस्यश्यामल क्षेत्र को; जिसे मौसमी बादलों ने आसमान के साथ गहरे तक जोड़ दिया है। यह कवि जीता रहा है उसी के स्वर्ग में, मरता रहा है उसी के नर्क में। यही उसकी सबसे घनिष्ठ प्रियतमा है, सबसे अन्तरंग शत्रु है।... सत्य, सौन्दर्य और प्रेम की त्रिवेणी से भरी तथा शब्दों और चित्रों से सज्जित ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित ओड़िया कवि सीताकान्त महापात्र की इस काव्यकृति का नया संस्करण, अपनी नयी साज सज्जा के साथ समर्पित है हिन्दी के सहृदय पाठकों को, जो जानते हैं कि सुन्दर कृतियों को कैसे प्यार किया जाता है।

सीताकान्त महापात्र (Sitakant Mahapatra )

सीताकान्त महापात्र आधुनिक भारतीय कविता के समर्थ कवि एवं अन्तरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त मनीषी विद्वान । जन्म : सन् 1937 में ओड़िशा में । उत्कल, इलाहाबाद तथा कैम्ब्रिज विश्वविद्यालयों में शिक्

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