ये इश्क़ नहीं आसां - 'सिर्फ़ तुम्हारे लिए आयी हूँ प्रमेश।' उसने मेरे सीने पर सिर रखकर कहा, 'तुमसे वह छोटी-सी मुलाक़ात और महीनों से रात-दिन चलती बातों ने मुझे पूरी तरह तुम्हारे प्यार की गिरफ़्त में जकड़ लिया है। हर पल तुम मेरे दिलो-दिमाग़ पर छाये रहते हो। तुम्हें छूने और तुम्हें प्यार करने के लिए मेरे अन्दर अजब-सी तड़प पैदा हो गयी थी। मुझे हमेशा लगता कि जो शख़्स दूर से मुझे इस तरह बाँध सकता है, उसका साथ कितना मादक होगा। आई लव यू सो मच प्रमेश...।' उसके शब्द उसके चेहरे पर उभरे हुए थे, आँखों में तरलता थी और बाँहों में ग़ज़ब का कसाव...। बड़ी मारक नज़रों से वह मुझे देखती रही और फिर मेरे होंठों को बेतहाशा चूमने लगी। मेरे अन्दर-बाहर नदी-सी उफनने लगी। बेक़ाबू से हम एक-दूसरे से प्यार करने लगे। प्रेम और देह के नये-नये रहस्यों को अनावृत करने लगे। कभी लगता है न कि जीवन की एक लम्बी पारी खेलने के बाद भी संवेदना और देह के दोनों स्तरों पर अभी कितना कुछ जानना और खोजना शेष है। 'निमिषा', उन अन्तरंग क्षणों में मैंने उसके बालों में उँगलियाँ फेरते हुए कहा, 'जब से तुम मेरे जीवन में आयी हो मैंने अपनी ज़िन्दगी में एक नयी तरह की उत्तेजना को महसूस किया है। सिर्फ़ आवाज़ और तुमसे बातें करके ही तुम्हारा नशा मुझे तरंगित करने लगा था और उस सरसरी मुलाक़ात ने तो मुझे मदहोश कर दिया। जादूगरनी हो तुम। 'कम तुम भी नहीं हो, प्रमेश। सोच भी नहीं सकती थी कि मेरी जिन्दगी में ऐसा रोमांचक मोड़ भी आयेगा। कोई पुरुष मुझे इस तरह खींच सकता है और वो भी इस हद तक...। तुम्हारा सुरूर रात-दिन मुझ पर हावी रहने लगा है।'—इसी पुस्तक से...
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