उत्तर सन्धान - बांग्ला भाषा के प्रतिष्ठित आधुनिक रचनाकारों में श्री सुनील गंगोपाध्याय का नाम हिन्दी के सजग पाठकों के लिए अपरिचित नहीं है। उनका यह उपन्यास 'उत्तर सन्धान' उनकी बहुचर्चित बांग्ला कृति 'धूलिबसन' का हिन्दी रूपान्तर है। 'उत्तर सन्धान' एक ऐसे प्रौढ़ नारी-मन के भीतर की कसमसाहट और हाहाकार की कथा है जिसमें अजब क़िस्म का आकर्षण, बेचैनी और तनाव है। इस उपन्यास की नायिका 'मन्दिरा' रूप में सुनील जी ने निस्सन्देह एक अद्भुत चरित्र की सृष्टि की है। —एक ऐसा चरित्र जो अपने लिए गहरे आत्मिक संकट का ताना-बाना बुनकर स्वयं एक अलग निस्संग जीवन जीने का चुनाव करता है। सवाल उठता है कि आख़िर वह कौन-सा संकट है जो किसी मध्यवयस्क नारी-मन को उसके अभ्यस्त जीवन से छिन्नमूल कर देता है? प्रश्न यह भी है कि जैसा भी जो भी वास्तविक जीवन होता है उसके समानान्तर चलने वाले पराजित मगर संवेदना के स्तर पर सक्रिय मन का जीवन भी महत्त्वपूर्ण है या नहीं? आख़िर हारे हुए जीवन के संवेदनशील बने रहने की सार्थकता भी कितनी है? क्या मन्दिरा सरीखा चारित्रिक द्वैत सम्भव है?..... —दरअसल, एक तीव्र कौतूहल और अनन्य आकांक्षाओं के बीच जीवन के गहरे जटिल प्रश्नों के उत्तर तलाशता है यह उपन्यास 'उत्तर सन्धान'।
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