परजा - भारतीय साहित्य में उपन्यासकार के रूप में अग्रणी उड़िया साहित्यकार गोपीनाथ महान्ती का 'परजा' मानवीय करुणा, पीड़ा, उत्थान-पतन और मूल्यों से जुड़े रहने से उपजी वेदना का एकदम अनूठा कथानक है। वनवासी जीवन की आवश्यकताएँ, उनकी पसन्द-नापसन्द, प्रेम-घृणा, लाज- शरम आदि भावों को व्यक्त करने के अवसर हमारे- आपके मानदण्डों से भिन्न हैं। उनके मूल्यबोध में अभावों से संघर्ष की अकूत क्षमता और साहस है। गोपीनाथ महान्ती का कथानक किसी नाटकीयता का मोहताज नहीं। उनका दृष्टिकोण अत्यन्त सन्तुलित है। कोई राजनीतिक झुकाव लिए बिना वे अपनी बात कह जाते हैं। वस्तुत: महान्ती जी का यही समभाव पाठक को अभिभूत कर देता है।
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