उजाले के मुसाहिब - विजयदान देथा लोक-कहानियों की सूरत में कहानी बयान करते हैं और बीच में कहीं एक स्तर पर वह ऐसी बात कह जाते हैं कि कहानी का सारा आयाम बदल जाता है। यह उनके पास बहुत ख़ूबसूरत क्राफ्ट है। और यह सिर्फ़ क्राफ्ट ही नहीं है। इसके पीछे एक पूरी विचारधारा है, जो पुरानी बात कहते हुए भी कहानी को शाश्वत कर देती है—सारे समयों के लिए सच! —अमृता प्रीतम बिज्जी की कहानियों की बुनावट ऐसी कि बावरा मन बलिहार जाये, तेवर ऐसे कि जेटयुगीन आधुनिकता को शर्म आने लगे और प्रहार की क्षमता ऐसी कि अच्छी से अच्छी व्यंग्य-रचना भी धूल चाट जाये।... कुल मिलाकर आलम यह कि बिज्जी की कहानियों के हाथ में लोकतन्त्र की ऐसी लगाम है कि वे पाठकों को किसी भी दिशा में किसी भी गति से दौड़ा दें।—बलराम प्रस्तुत है प्रतिष्ठित कथाकार विजयदान देथा की मानवीय रागात्मकता में रची-बसी अनूठी कहानियों का नवीनतम संग्रह 'उजाले के मुसाहिब'।
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