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Sukratara

Hardbound
Hindi
8126311002
1st
2006
204
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शुक्रतारा - अज्ञेय द्वारा सम्पादित सप्तकों का महत्त्व निर्विवाद है। श्रेष्ठ प्रतिभा के धनी सप्तकों के ये कवि हिन्दी के प्रमुख रचनाकार के रूप में स्थापित हुए हैं। उन्हीं में एक है मदन वात्स्यायन जो तीसरे सप्तक के ऐसे कवि हैं जिनकी सृजन भंगिमा और विषयवस्तु एकदम अलग और अद्भुत है। वे पेशे से इंजीनियर थे इसलिए हम कह सकते हैं कि उनकी कविताओं में मशीनों की आवाज़ सुनाई पड़ती है लेकिन उनके भीतर एक विद्रोही व्यक्ति भी था, जो औद्योगिक पूँजीवाद का सशक्त विरोधी और निष्करुण नौकरशाही की बुर्जुवा मनोवृत्ति से एक सर्जक के रूप में टक्कर लेता दिखाई पड़ता है। मदन वात्स्यायन की कविताओं का एक तेवर इन सबसे भिन्न कोमलता और सौन्दर्य का है जो तीसरा सप्तक में प्रकाशित ऊषा सम्बन्धी कविताओं से दिखाई देना शुरू होता है और बाद की अनेक कविताओं में अपनी आकर्षक छटाओं में विद्यमान है। तीसरा सप्तक के प्रकाशन के बाद मदन वात्स्यायन रचना के परिदृश्य में प्रायः दिखाई नही पड़े। बस उनकी कविताएँ पत्र पत्रिकाओं में छिटपुट प्रकाशित होती रहीं। कभी उन्होंने अपना संग्रह प्रकाशित कराने में रुचि नहीं ली, फलस्वरूप उनके जीवनकाल में कोई संग्रह प्रकाशित नहीं हो सका। भारतीय ज्ञानपीठ को प्रसन्नता है कि वह एक महत्वपूर्ण लेकिन लगभग अगोचर कवि की कविताएँ पहली बार पुस्तककार प्रकाशित कर अपना चिर परिचित दायित्व निभा रहा है। पाठकों को यह ऐतिहासिक लेकिन सर्जनात्मक रूप से उत्कृष्ट काव्य संग्रह प्रीतिकर लगेगा।

(Madan Vatsyayan )

मदन वात्स्यायन - पूरा नाम: लक्ष्मी निवास सिंह जन्म: 4 मार्च, 1922 ग्राम वीरसिंहपुर, ज़िला समस्तीपुर (बिहार)। शिक्षा: एम.एससी., इंग्लैण्ड की लीड्स यूनिवर्सिटी से केमिकल इंजीनियरिंग। 1950 में सिंदरी खा

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