शोधयात्रा - मराठी के प्रतिष्ठित उपन्यासकार अरुण साधू के इस उपन्यास में वर्तमान में जी रहे भारतीय समाज के विभिन्न रूपों का चित्रांकन है। कथाकार ने उन तथ्यों को उजागर करने का सुन्दर प्रयास किया है जो किसी समाज को विकृत करने में सीधे उत्तरदायी होते हैं। जीवन का आख़िर लक्ष्य क्या है?–धनोपार्जन? प्रतिष्ठा और यशोलाभ? सांसारिक भोग?...या फिर समाज-सेवा अथवा तथाकथित आध्यात्मिक क्रियाओं द्वारा अदृष्ट का साक्षात्कार? इन्हीं सम्भ्रावस्थाओं में उलझा उपन्यास का नायक जीवन के जिस किसी पक्ष को अपनाता है, बाद में उसे वही अव्यावहारिक लगने लगता है। ऐसा क्यों?...शायद शुद्ध चारित्रिकता का अभाव, संस्कारहीनता और असावधानता– ये ही अथवा ऐसे ही कुछ कारण हैं जिनसे व्यक्ति की यह जीवन-यात्रा सार्थक नहीं बन पाती! अपने शिल्प और कथा-संवेदना के कारण हिन्दी पाठकों को यह कृति अत्यन्त रोचक तो लगेगी ही, इसके माध्यम से वह उक्त चिन्तन की मनोभूमि में अपना भी कुछ जोड़ देना चाहेंगे।
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