ऋषिकेश का पत्थर - तेलुगु साहित्य में अविराम लिखकर सैकड़ों कहानियों की सृष्टि करके परिमाण और गुणवत्ता की दृष्टि से सफलता पाने वाले साहित्यकारों में कान्ताराव का नाम निश्चित रूप से लिया जाता है। हो सकता है कि कहानी के शिल्प में कान्ताराव ने नये-नये प्रयोग नहीं किये हों, हो सकता है कि इन्होंने दुरूह मनोवैज्ञानिक या सामाजिक सिद्धान्तों का प्रतिपादन करने वाली कहानियाँ न लिखी हों, साम्यवादी दृष्टि को या किसी और दृष्टि को अपनाकर जोश से हमारा ख़ून खौलाने वाली कहानियाँ भी न लिखी हों और तेलुगु के अनेक कहानीकारों की तरह इन्होंने भी मध्यवर्गीय परिवार के लोगों की कहानियाँ ही लिखी हों, परन्तु इन कहानियों को पढ़ने के बाद ऐसा नहीं लगता कि ये वे ही पुरानी कहानियाँ हैं जिनको हम पहले पढ़ चुके हैं। ये कहानियाँ ऐसी हैं जो बिना किसी जोश के ही, हमें थोड़ा सोचने की प्रेरणा देती हैं और हमारे हृदय पर अपनी छाप छोड़ती हैं। बलिवाड कान्ताराव का हिन्दी पाठकों को पहला कहानी-संग्रह समर्पित करना ज्ञानपीठ के लिए बड़े हर्ष की बात है।
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