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Rah Naa Ruki

Hardbound
Hindi
9788126316199
3rd
2008
120
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₹100.00

राह न रुकी –
रांगेय राघव विलक्षण मेधा के धनी थे। वे समकालीनता के ही प्रखर पारखी नहीं थे बल्कि इतिहास की धड़कनों को भी पूरी संवेदना से महसूस करते थे और उनकी बारीकियों को पाठकों तक पहुँचाने की कोशिश करते थे। 'राह न रुकी' में 'चन्दना' ऐसी ही पात्र है जिसके माध्यम से उन्होंने बुद्ध और महावीर युग के उस पुनर्जागरण को प्रस्तुत किया है, जिसमें पहली बार ब्राह्मण संस्कृति को तगड़ी चुनौती मिली थी और हज़ारों वर्षों के वैदिक युग की उपलब्धियों पर प्रश्नचिह्न लग गया था।
महावीर ने जैन मत में क्रान्तिकारी प्रयोग किये और अहिंसा तत्त्व को व्यापक दृष्टि दी। उन्होंने समाज में स्त्रियों के महत्त्व को समझा, गृहस्थ धर्म को हेय नहीं ठहराया और सामाजिक समरसता को बनाये रखने का मार्ग प्रशस्त किया।
'राह न रुकी' में साध्वी चन्दनबाला के रूप में जैन साहित्य में ख्यात एक प्रमुख नारी पात्र वसुमती के चरित्र को उभारा गया है। राजकुमारी वसुमती को साध्वी चन्दनबाला के रूप में श्रद्धा के दृष्टि से देखा जाता है। स्वयं भगवान महावीर ने चन्दनबाला को स्त्री संघ में सर्वोच्च आसन प्रदान किया था। उन्हें केन्द्र में रखकर राज्य, समाज और धार्मिक चेतना का ताना-बाना लेखक ने इस उपन्यास बुना है। व्यक्ति स्वातन्त्र्य और स्त्री स्वातन्त्र्य का जो पाठ इसमें नज़र आता है उससे यह उपन्यास और भी प्रासंगिक बन गया है।
रांगेय राघव की यह विशिष्ट कृति अपने पाठकों को प्रस्तुत करते हुए ज्ञानपीठ को प्रसन्नता है।

रांगेय राघव (Rangeya Raghav)

रांगेय राघव17 जनवरी, 1923 को जन्म आगरा में मूल नाम टी. एन. वी. आचार्य (तिरुमल्लै नम्बाकम् वीर राघव आचार्य) । कुल से दाक्षिणात्य लेकिन ढाई शतक से पूर्वज वैर (भरतपुर) के निवासी और वैर, बारोली गाँवों के ज

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