पट्टमहादेवी शान्तला - भारतीय ज्ञानपीठ के 'मूर्तिदेवी पुरस्कार' से सम्मानित उपन्यास की नायिका 'शान्तला' भारतीय इतिहास की एक ऐसी अनुपम और अद्भुत पात्र है जिसकी कीर्ति कर्नाटक के शिलालेखों में 'लावण्य-सिन्धु', 'संगीत विद्या-सरस्वती', 'मृदु-मधुर वचन प्रसन्ना' और 'गीत-वाद्य-नृत्य सूत्रधारा' आदि अनेक विशेषणों में उत्कीर्ण है। होयसल राजवंश के महाराज विष्णुवर्धन की पट्टरानी शान्तला को केन्द्र में रखकर नागराज राव ने एक ऐसे विशाल उपन्यास की रचना की है जिसमें शताधिक ऐतिहासिक पात्र राजवंश की तीन पीढ़ियों की कथा को देश और समाज के समूचे जीवन-परिवेश की पृष्ठभूमि में प्रतिबिम्बित करते हैं। सर्जनात्मक प्रतिभा का इतना सघन वैभव लेकर नागराज राव ने अपने पच्चीस वर्ष के ऐतिहासिक अनुसन्धान और आठ वर्ष की लेखन-साधना को प्रतिफलित किया है—'शान्तला' के 2000 पृष्ठों में। प्रत्येक पृष्ठ रोचक, प्रत्येक घुमाव मन को बाँधनेवाला। बहुत कम शिल्पी ऐसे होते हैं जो कथा के इतने बड़े फलक पर मानव-अनुभूति के खरे और खोटे विविध पक्षों को इतने सच्चे और सार्थक रंगों से चित्रित करें कि कृतित्व अमरता प्राप्त कर लें। शान्तला का चरित्र भारतीय संस्कृति की प्राणधारा के स्रोत की गंगोत्री है। पट्टरानी शान्तला के षड्यन्त्रों के चक्रव्यूह को भेदकर जिस संयम, शालीनता, उदारता और धार्मिक समन्वय का उदाहरण प्रस्तुत किया है उसकी हमारे आज के राष्ट्रीय जीवन के लिए विशेष सार्थकता है। हिन्दी पाठकों को सहर्ष समर्पित है—चार भागों में नियोजित उपन्यास का नया संस्करण।
Log In To Add/edit Rating
You Have To Buy The Product To Give A Review