नीरज संचयन - गोपालदास 'नीरज' ने काव्य को भाषा की दृष्टि से ज़िन्दगी के क़रीब लाने का ही प्रयास नहीं किया, बल्कि एक छन्द और अनुभूति की दृष्टि से भी गीत को एक नयी दिशा की ओर उन्मुख कर दिया। नीरज ने गीत को कविता के समानान्तर नये बोध और जीवनानुभव को नये ढंग से प्रकट करने का प्रयास किया। इससे पहले गीत की एक उपेक्षित विधा के रूप में पहचान थी। आज गीत के आधार स्तम्भ बन चुके हैं— नीरज। नीरज के गीत ना लोकजीवन से विमुख हैं ना नागरिक जीवन से उपेक्षित। ना तो राष्ट्र की सीमा से बद्ध हैं और ना अन्तर्राष्ट्रीय स्थितियों से तटस्थ। नीरज अपने परिवेश के प्रति सजग तथा अस्तित्व के प्रति व्यापक रूप से सतर्क हैं। निर्विवाद रूप से आज गीत विधा के वे बेताज बादशाह हैं। यह अकारण नहीं है कि उन्हें सुनने और देखने के लिए कवि सम्मेलनों में भारी हुजूम उमड़ पड़ता है। उनकी लोकप्रियता वास्तव में हिन्दी कविता के लिए एक उपलब्धि है।
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