फ़्रिज में औरत - 'फ़्रिज में औरत' की कहानियाँ बदले हुए समय की कहानियाँ हैं। बदले हुए समय की भाषा अपनी आधुनिकता, वांछा, संवेदनशीलता और अनुभवों के कोलाज से ही निर्मित होती है। मुशर्रफ़ आलम ज़ौक़ी अपनी कहानियों में वास्तविकता और फ़न्तासी के प्रयोग से कुछ-कुछ जादुई यथार्थवाद की तर्ज़ पर एक बिल्कुल ही नयी दुनिया के लैंडस्केप सामने रखते हैं। उनके चरित्र सम्भवतः दयनीय जीवन या नारकीय संसार का दुख नहीं भोग रहे होते। जीवन की विवशताओं से परे, पारदर्शी विश्वसनीयता को बनाये रखते हुए वे इतिहास के खँडहरों से बाहर निकलकर चरित्रों को अपनी स्वयं की स्वतन्त्र दुनिया बनाने की मज़बूती प्रदान करते हैं, इसलिए यह कहने में संकोच नहीं कि अपने समकालीनों में भाषा और प्रयोगों की सतह पर ज़ौक़ी सबसे भिन्न हैं। उनकी कलात्मकता उनकी अपनी ईजाद की हुई है। और यह कहना अतिशयोक्ति नहीं कि अपने निरन्तर प्रभावपूर्ण लेखन से ज़ौक़ी ने हिन्दी कथा-संसार को समृद्ध किया है।
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