ब्रह्मावर्त - अंग्रेज़ों द्वारा विस्थापित किये गये और पुणे छोड़कर कानपुर के पास ब्रह्मावर्त (बिठूर) में रहने के लिए विवश किये गये बाजीराव पेशवा (द्वितीय) के दत्तक पुत्र नानासाहब के जीवन पर आधारित 'ब्रह्मावर्त' एक चरित्रप्रधान उपन्यास है। सतारा के छत्रपति प्रतापसिंह के दीवान रंगो बापूजी गुप्ते की सहायता से नानासाहब ने क्रान्ति की योजना बनायी जिसमें उनको दिल्ली के बादशाह बहादुरशाह, लखनऊ की बेगम, झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई, असम के राजा कन्दर्पेश्वरसिंह, सम्बलपुर के राजकुमार सुरेन्द्र शाही, जगदीशपुर के कुँवरसिंह और अन्य कई रियासतदारों और जागीरदारों ने साथ दिया। दुर्भाग्य से क्रान्ति विफल हुई। अंग्रेज़ी राज का शिकंजा भारत पर कसता ही चला गया। क्रान्ति में भाग लेनेवाले शासक और सिपाही ही नहीं, असंख्य निरपराध लोगों को भी अंग्रेज़ों ने मौत के घाट उतार दिया। कुछ भूमिगत हुए और अन्त तक अज्ञातवास में रहे। नानासाहब को गिरफ़्तार करने के लिए अंग्रेज़ शासकों ने भरसक प्रयास किये, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। नानासाहब ने नैमिषारण्य में, अपनी अंग्रेज़ प्रेयसी और उससे हुए पुत्र सरजुजा के बिछोह का क्लेश सहते सन् 1903 में प्राण त्यागे। ऐतिहासिक उपन्यास लिखना कठिन काम है। यहाँ लेखक की कल्पना को पग-पग पर तथ्यों से टकराना पड़ता है। सृजनशीलता पर सत्य का अंकुश सतत बना रहता है। सफल लेखक वही है, जो सत्य और कल्पना का ऐसा संयोजन करे कि वे अलग से पहचाने न जा सकें। मराठी में प्रकाशित होने पर इस उपन्यास की भूरि-भूरि प्रशंसा हुई थी, मराठी के प्रसिद्ध पत्र 'केसरी' ने लिखा था: उपन्यास में ऐतिहासिक तथ्यों की रोचक और नवीन प्रस्तुति के लिए लेखक अभिनन्दन के पात्र हैं। 'नई दुनिया' इन्दौर ने लिखा : ‘लवलेटर्स ऑफ़ एन इंगलिश पिअरेस टू एन इंडियन प्रिंस' पुस्तक के नानासाहब की प्रेयसी की कल्पना के भावभीने चित्र हृदयस्पर्शी हैं।
Log In To Add/edit Rating
You Have To Buy The Product To Give A Review