बनगरवाड़ी - आधुनिक मराठी साहित्य-जगत् में श्री व्यंकटेश माडगूलकर, निर्विवाद रूप से, शीर्ष पर प्रतिष्ठित हैं। वास्तव में माडगूलकर की रचनाएँ साक्षी हैं जीवन के प्रति उनकी नयी दृष्टि की, उनके अपने स्वतन्त्र शिल्प और चिन्तनशीलता की। 'बनगरवाड़ी' उपन्यास में भी मानव-मन की सूक्ष्मातिसूक्ष्म तथा सम्मिश्र प्रवृत्तियों का चित्रण, गँवई जीवन के मनोविश्लेषण की गहराई और सम्पूर्ण मानवीय आस्थाओं का स्वीकरण जीवन्त रूप से मुखर है। 'बनगरवाड़ी' माडगूलकर-साहित्य की बड़ी उपलब्धि है और यह काफ़ी सराहा भी गया है। मराठी में इस उपन्यास के अब तक तेरह संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं। 'बनगरवाड़ी' में गाँव के प्रति जिस सर्जनात्मक सूझ-बूझ, सहानुभूति और स्वाभाविक पैनी दृष्टि का संयोजन है, वह एक प्रीतिकर विस्मय है। महाराष्ट्र के एक छोटे से गाँव के बहाने माडगूलकर जी ने अपने समय, समाज और कह सकते हैं कि, समूचे देश की समस्याओं और उन सबके बीच जीते-भोगते मनुष्य के बहुरंगी यथार्थ को अधुनातन संवेदना के साथ आत्मीय अभिव्यक्ति दी है। हिन्दी में श्रेष्ठ उपन्यास के पाठकों को 'बनगरवाड़ी' आश्वस्त करेगा, यह विश्वास है।
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