अपना अपना अन्तरंग - ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित तमिल के मूर्धन्य कथाकार एवं अपनी पीढ़ी के अप्रतिम गद्यकार डी. जयकान्तन तमिल साहित्य के अधुनातन सव्यसाची कहे जाते हैं। 'शिरुकदै मन्नन' (कहानी सम्राट) की उपाधि से अलंकृत डी. जयकान्तन की धारा के विरुद्ध चलनेवाले लेखक के रूप में अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति है। सतत संघर्ष के बावजूद उनके लेखन की धार कभी कुन्द नहीं हुई बल्कि समय के साथ और प्रखर होती गयी है। गम्भीर सामाजिक सरोकार को साहित्य का लक्ष्य मानने वाले जयकान्तन के लेखन का मुख्य स्वर मनुष्य की बेहतरी है। मनुष्य की जय यात्रा और मानवता की विजय के प्रति वे आस्थाशील रहे हैं। उनकी रचनाएँ न सिर्फ़ दरिद्रों के प्रति सहानुभूति दर्शाती हैं बल्कि समस्याओं की तह में जाकर उनका समाधान ढूँढ़ने के लिए भी जूझती हैं। विषय-वैशिष्ट्य, कथ्य-वैविध्य और शिल्प की विलक्षणता जयकान्तन के साहित्य को असाधारण बनाती है। यहाँ प्रकाशित अपनी सर्वश्रेष्ठ चौदह कहानियों का चयन लेखक ने स्वयं किया है तथा तमिल और हिन्दी के वरिष्ठ अनुवादक द्वय ह. बालसुब्रह्मण्यम और र. शॉरिराजन ने इन कहानियों का अनुवाद किया है। हिन्दी के अपने स्वाभाविक मुहावरे में किया गया यह अनुवाद रचना के मूल पाठ का आस्वाद देता है। श्रेष्ठ साहित्य-प्रकाशन की परम्परा का निर्वाह करते हुए जयकान्तन की इस पुस्तक का प्रकाशन कर भारतीय ज्ञानपीठ गौरव का अनुभव करता है।
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