अभ्यंतर - इन कविताओं की प्रेरणा भूमि मध्य प्रदेश हैं। गाँवों के दृश्य में जब अधनंगे बच्चों की धूलसनी टोली को अपनी कौतुहलपूर्ण आँखों से ताकते पाती हूँ तो सचमुच हृदय चाहता है न जाने मेरे हाथों को कितना लम्बा होना चाहिए था, उनमें से हर किसी के पास पहुँचने के लिए। इसी तरह मकान बनाने वाले राज मज़दूरों के परिवार में पलती असहायता और ग़रीबों में तीख़े प्रहार हैं जो दूसरों की सम्पन्नता को एक मजाक बना डालते हैं। धूप में कुनमुनाते मज़दूरिन के दुधमुहें की सम्भाल कौन करता है, जब वह दूसरों के लिए शीतल बरामदों का निर्माण कर रही होती है? जब आसमान से ओले टपकते हैं तब लंगड़े चोर की ही मृत्यु होती है। जो सशक्त हैं, वे दौड़ कर छुप जाते है। राहत के मौसम में ओलों से कटे पौधों के सिर अपने से सटाये स्त्रियाँ विलाप करती हैं जैसे उनका कोई सगा सम्बन्धी ख़त्म हो गया हैं।—कवयित्री के ही शब्दों में
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