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Bakhedapur

Hardbound
Hindi
9789355184481
4th
2022
134
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₹399.00

बखेड़ापुर - युवा रचनात्मकता में कला ज़्यादा है और यथार्थ बहुत कम—इस तरह का आरोप कुछ लोग उसके मत्थे मढ़ रहे हैं। इस तोहमत के साथ यह भी जोड़ दिया जाता है कि नये रचनाकारों के वैचारिक और राजनैतिक विवेक क्षीण है। इस तरह के बेरहम मन्तव्यों का ठोस और समर्थ प्रत्याख्यान है हरे प्रकाश उपाध्याय का उपन्यास—'बखेड़ापुर'। बखेड़ापुर में जो गाँव 'बखेड़ापुर' है उसके ज़रिये हरे प्रकाश उपाध्याय भारतीय गाँव की जीवन्त, दिलचस्प और अर्थपूर्ण दास्तान सुनाते हैं और इस प्रक्रिया में यथार्थ की बहुल और बहुस्तरीय छवियाँ अपने समूचे मर्म के साथ उजागर होने लगती हैं। हरे प्रकाश का हुनर यह है कि वह बखेड़ापुर में जीवन की विलक्षणताओं, नाटकीयता, उदात्तताओं से परहेज करते हैं; वह जीवन की साधारणता में ही वैशिष्ट्य और औत्सुक्य का रसायन पैदा कर देते हैं। सम्भवतः हमारे मुद्रित संसार की यही सार्थक क़िस्सागोई है। बखेड़ापुर इसलिए भी ख़ास है, क्योंकि यहाँ मामूली जन के सिमटे, धूसर और मन्थर यथार्थ को व्यापक, तीख़े और गत्यात्मक राजनीतिक सरोकार से पहचाना गया है; दूसरी तरफ़ विचार और सरोकार इस उपन्यास में जीवन की उष्मा पाकर चमकते हैं। बखेड़ापुर में बहुत सारे चरित्र हैं लेकिन जैसे ही कोई पात्र ज़्यादा वर्चस्व दिखाने लगता है, उसे धकेलते हुए दूसरा आ जाता है। इस प्रकार बखेड़ापुर प्रमुख लोगों की नहीं बहुत सारे लोगों की गाथा है। इस तरह भी कि बखेड़ापुर का केन्द्रीय चरित्र स्वयं बखेड़ापुर है। बखेड़ापुर को क़िस्सों सरीखी सादगी से रचा गया है। इस क़िस्से में वर्ण व्यवस्था, शिक्षा, राजनीति, आर्थिक-सामाजिक विभेद के तनाव एवं अन्तर्विरोध प्रकट होते चलते हैं और अपनी परिणति में बखेड़ापुर हमारे देश के रूपक में रूपान्तरित हो उठता है। बखेड़ापुर में ज़िन्दगी भरपूर है और इस ज़िन्दगी की हरे प्रकाश ने जिस ज़रूरी तटस्थता और लेखकीय संलग्नता के साथ पुनर्रचना की है उसके कारण भी यह उपन्यास समकालीन सृजन संसार में समादृत होने का अधिकार हासिल करता है।—अखिलेश

हरे प्रकाश उपाध्याय (Hare Prakash Upadhyay)

हरे प्रकाश उपाध्याय  जन्म: 5 फ़रवरी, 1981, बैसाडीह, भोजपुर (बिहार)। कृतियाँ: कविता संग्रह 'खिलाड़ी दोस्त और अन्य कविताएँ'; उपन्यास 'बखेड़ापुर'। मन्तव्य (त्रैमासिक पत्रिका) का सम्पादन। सम्मान: 'अंकुर

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