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Aryabhat

Hardbound
Hindi
9789326352536
2nd
2015
588
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₹650.00

आर्यभट


विलक्षण प्रतिभाशाली एवं महान गणितज्ञ आर्यभट का जन्म सन् 476 ई. में हुआ था। उन्होंने 23 वर्ष की आयु में 'आर्यभटीय' नामक ग्रन्थ की रचना किया था। जिसका गणित के विकास में अमूल्य योगदान रहा है। विश्व में गणित की यह प्रथम पुस्तक है, जिसमें अंकगणित, बीजगणित, रेखागणित तथा त्रिकोणमिति का समावेश है। वह नालन्दा विश्वविद्यालय के छात्र थे, जहाँ उन्होंने एक के सिद्धान्त को प्रतिपादित किया था।

आर्यभट के जीवन का अधिकांश समय केरल परिक्षेत्र में व्यतीत हुआ था, जहाँ उन्होंने पुरातन पंचांग के संशोधन का कार्य किया तथा दो वेधशालाएँ स्थापित किया। नील नदी के तट पर स्थित 'त्रिनवय' नामक सुरम्य स्थान पर एक गुरुकुल की स्थापना किया था, जिसका केरल क्षेत्र में गणित के विकास पर महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। परवर्ती काल के कुछ विख्यात गणितज्ञ, यथा पांडुरंग स्वामी, प्रभाकर मिश्र, लाटदेव, निशंकु आदि ने इसी गुरुकुल में शिक्षा प्राप्त किया था। कुसुमपुर से केरल प्रवास के मध्य की भग्न श्रृंखलाओं को रोचक एवं सुन्दर ढंग से जोड़ने का प्रयास किया गया है, जिनके ऐतिहासिक सन्दर्भ यथास्थान प्रस्तुत किया गया है।

जीवन के उत्तरार्द्ध में देश- रक्षार्थ वह पाटलिपुत्र लौट आए तथा नालन्दा विश्वविद्यालय के कुलपति नियुक्त किए गये थे । हूण राजा मिहिरकुल के विरुद्ध गिरिव्रज (राजगृह) के निर्णायक युद्ध में उन्होंने महत्त्वपूर्ण योगदान दिया था।

उपन्यास को बोझिल न बनाने के उद्देश्य से गणितीय सिद्धान्तों का समावेश नहीं है, परन्तु यत्र-तत्र उनकी उपलब्धियों की ओर इंगित किया गया है। तत्कालीन परिवेश के अनुकूल उपन्यास की भाषा कथानकों एवं प्राकृतिक दृश्यों के सजीव एवं रोचक चित्रक प्रस्तुत करती है।

आर्यभट के गौरवशाली व्यक्तित्व कृतित्व को औपन्यासिक शिल्प में प्रस्तुत करती यह महत्त्वपूर्ण कृति अति पठनीय एवं संग्रहणीय है।

डॉ घनश्याम पाण्डेय (Dr. Ghanshyam Pandey)

डॉ. घनश्याम पाण्डेय - प्रारम्भ से ही गणित में गहन अभिरुचि। सन् 1960 में सागर विश्वविद्यालय से एम.एससी. (गणित) तथा 1963 में जेकोबी श्रेणी की अभिसारिता एवं संकलनीयता पर गहन शोध करके विक्रम विश्वविद्य

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