Sahasraphana

Hardbound
Hindi
9788126320462
7th
2010
456
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सहस्रफण - 'सहस्रफण' कवि-सम्राट विश्वनाथ सत्यनारायण का बृहत् एवं सर्वमान्य उपन्यास है। 1934 में रचित इस उपन्यास में मुख्यतया भारतीय जन-जीवन के 'सन्धिकाल' का चित्रण है। प्राचीन संस्कृति के मूल्यों पर अंग्रेज़ सरकार का सहारा लेकर किये गये आघात, अन्ध-अनुकरण के फलस्वरूप भारतीय जीवन की हो चुकी एवं हो रही दुर्गति, 'स्वधर्म' की वास्तविक महत्ता आदि बातों का अत्यन्त प्रभावशाली अनुशीलन इस उपन्यास में किया गया है। कहा जा सकता है कि इसमें इतिहास भी है, समाजशास्त्र भी है, राजनीति भी है और प्राचीन संस्कृति का निरूपण भी है। और सबसे बड़ी विशेषता है इसके कथानक की रसात्मकता। कथा-संविधान, पात्र-पोषण, वर्णन-पटुता, कथोपकथन-चमत्कार, उदात्त कल्पना-प्रचुरता एवं कलामय धर्मासक्ति—इनके माध्यम से कृतिकार ने जिस वर्तमान 'सन्धिकाल' की पृष्ठभूमि उपन्यास में निरूपित की है, उसके अनुसार लेखक का आशय है कि आज हमारी प्राचीन आस्थाएँ तो शिथिल पड़ रही हैं, किन्तु उनके स्थान पर उतने ही स्पृहणीय नये मूल्यों की स्थापना नहीं हो सकी है। धर्म के प्रति विशिष्ट आश्वस्तता के साथ-साथ गहन शास्त्रीय विवेचन और प्रगाढ़ औपन्यासिक स्वरूप का निर्वाह 'सहस्रफण' में जितना और जैसा हो पाया है, इसका विस्मयकारी अनुभव पढ़कर ही किया जा सकता है। उपन्यास का हिन्दी रूपान्तर किया है डॉ. पी.वी. नरसिंह राव ने। हिन्दी पाठकों को समर्पित है इस महत्त्वपूर्ण कृति का नवीनतम संस्करण।

पी. वी. नरसिंहराव (P.V. Narsinghrao)

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विश्वनाथ सत्यनारायन (Vishvanath Satyanarayan )

विश्वनाथ सत्यनारायण तेलुगु साहित्य में कवि-सम्राट के नाम से विख्यात। जन्म : 1875, नन्दपूर गाँव, कृष्णा, ज़िला, आन्ध्र प्रदेश शिक्षा : एम.ए. (तेलुगु तथा संस्कृत)। अध्यापक, आचार्य एवं कुछ समय तक एक

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