Tapovan Mein Bavandar

Hardbound
Hindi
NA
2nd
2016
106
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तपोवन में बवण्डर - चाहे समस्त भारत देश की बात करें अथवा यहाँ के नगर, गाँव, घर के भीतर बाहर के जीवन की—मानव-मन की विकृति के कारण बवण्डर पहले भी उठते रहे हैं और समाज के शान्त तपोवन को दूषित करते रहे हैं। फिर भी तब कुछेक घटनाओं को छोड़कर व्यक्ति ने धैर्य एवं संयम का परिचय दिया है। कारण स्पष्ट है—तब जीवन सरल, सादगी भरा था लेकिन आज आधुनिकता के अन्धड़ में फँसी हुई, जर्जर पूँजीवादी सभ्यता का दामन थामती हमारी यह निरीह, निस्तेज़ पीढ़ी सतह पर तिर रही हैं, या फिर मात्र अपने शरीर की धूल झाड़ने में लगी हुई है। अतीत के सागर में प्रवेश कर अमृत-मन्थन करने या भविष्य में झाँककर नया पथ खोज निकालने की आकांक्षा उसमें कम ही दिखाई देती है। ऐसी ही अनेक विडम्बनाएँ हैं जिन्हें कविहृदय लेखिका शीला गुजराल ने प्रस्तुत संकलन की कहानियों में रेखांकित करने का प्रयास किया है। उनकी इन कहानियों में समाज के प्रति तीख़ा व्यंग्य न होकर ममता, भावुकता और चेतनता का सन्तुलित मिश्रण है और कथन की शैली इतनी सरस और सहज कि पाठक के अन्तर्मन की गहराई को छुए बिना नहीं रहती।

शीला गुजराल (Sheela Gujral )

शीला गुजराल - हिन्दी, पंजाबी और अंग्रेज़ी में समान रूप से लिखनेवाली प्रतिष्ठित लेखिका एवं कवयित्री। शिक्षा: अर्थशास्त्र की प्राध्यापिका के रूप में कार्यक्षेत्र में पदार्पण, लेकिन तुरन्त ह

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