शरत् के नारी पात्र - इस पीढ़ी का कौन पाठक ऐसा है जो शरत् के नारी-पात्रों से अपरिचित होगा। श्रीकान्त के घुमक्कड़ जीवन की केन्द्रबिन्दु असीम स्नेहमयी राजलक्ष्मी, वृन्दावन जाती हुई लांछिता कमललता, देवदास की पारो, गृहदाह में दो मित्रों के बीच भटकती हुई अचला, असीम वात्सल्यमयी बिन्दो के इन स्नेह, करुणा, ममता और मर्यादा से निर्मित शब्दमूर्तियों की एक पूरी पंक्ति हमारी मन की आँखों के सामने से गुज़र जाती है। हर पाठक ने व्यथा के क्षणों में शरत् के पात्रों से ममता पायी है, सान्त्वना पायी है। वे हमारे जीवन के अभिन्न अंग बन चुके हैं। शरत् के इन अमर नारी-पात्रों का अत्यन्त सूक्ष्म और सहानुभूतिपूर्ण विश्लेषण डॉ. रामस्वरूप चतुर्वेदी ने प्रस्तुत किया है। कई भारतीय भाषाओं में अनूदित और चर्चित होकर यह कृति सामान्य पाठकों और विदग्ध समीक्षकों के बीच शरत् के साथ-साथ घूमी है। अब प्रस्तुत है इस आलोचना कृति का नया संस्करण एक विस्तृत और अभिनव भूमिका के साथ, जिसका शीर्षक है 'भारतीय आलोचना : बांग्ला और हिन्दी साहित्य के सम्पर्क की पृष्ठभूमि में'। यह भूमिका मूल ग्रन्थ को, उसके उपजीव्य के साथ, फिर सही परिप्रेक्ष्य में रखती है।
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