प्रेमचन्द : स्त्री जीवन की कहानियाँ -
भारत जैसे देशों के विषय में कार्ल मार्क्स ने कभी कहा था, "वहाँ स्त्रियाँ दोहरे शोषण की शिकार हैं।" प्रेमचन्द के समय और सन्दर्भ में इस कथन की व्याख्या स्वयं सिद्ध है। उन दिनों भारतीय स्त्रियों का शोषण विदेशी निज़ाम और देशी सामन्तवाद-दोनों के द्वारा हो रहा था । प्रेमचन्द ने बहुत बारीकी से इस तथ्य को समझा था। उनके लेखन में स्त्रियों की समस्याएँ और उनका दमित जीवन बहुत सहानुभूति के साथ चित्रित है। जिन खोखली मर्यादाओं पर हमारा समाज टिका है, उसकी प्रेमचन्द ने कटु आलोचना की। उनकी सुधारवादी चेतना में सामाजिक आलोचना निहित है।
कहा जाता था कि तलाक़ की अवधारणा भारतीय समाज के लिए उपयुक्त नहीं है। कहने का आशय यह कि भारतीय समाज स्त्री के शोषण पर मौन रहता है, लेकिन ज्यों ही वह मुक्त होना चाहती है, विरोध के स्वर भी ऊँचे होने लगते हैं। चूँकि प्रेमचन्द अपने समय में स्त्रियों की समस्या पर गम्भीरता से विचार करनेवाले लेखक थे, इसलिए उन्होंने लोक-मान्यताओं का जमकर खण्डन किया।
इस पुस्तक में प्रेमचन्द की स्त्री-जीवन से जुड़ी कहानियों का संकलन किया गया है। अपनी तमाम पीड़ा और शोषण के साथ स्त्रियाँ इन कहानियों में उपस्थित हैं। वर्तमान समय में मुक्ति की आकांक्षा पाले स्त्रियों के लिए प्रेमचन्द की ये कहानियाँ प्रेरणास्रोत की तरह हैं और उस लड़ाई की नींव भी जिसे वे लड़ रही हैं।
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