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प्रख्यात ललित निबन्धकार कृष्णबिहारी मिश्र के ये निबन्ध, संस्मरण विधा के आसाधारण उदाहरण हैं जो साहित्य के कृती व्यक्तित्वों की जीवन घटनाओं और अनुभवों को लोक-व्यापी अर्थ देते हैं। विश्वनाथ प्रसाद मिश्र, नन्ददुलारे वाजपेयी, हजारीप्रसाद द्विवेदी, वाचस्पति पाठक, स.ही. वात्स्यायन ‘अज्ञेय', प्रभाकर माचवे, ठाकुरप्रसाद सिंह, धर्मवीर भारती, शिवप्रसाद सिंह, कुमारेन्द्र पारसनाथ सिंह जैसे लेखकों पर लिखे ये निबन्ध साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान के अधिकारी हैं। लेखक के लिए संस्मरण केवल अतीत-स्मृति नहीं, 'म्लान पड़ रही जीवनप्रियता को रससिक्त कर पुनर्नवा' करने वाले हैं। इन्हें पढ़कर ‘ध्यान आता है कि किस बिन्दु से चलकर, राह की कितनी विकट जटिलता से जूझते हम कहाँ पहुँचे हैं'; सचमुच इससे 'लोकयात्रा की थकान' थोड़ी कम हो जाती है।
वर्तमान और भविष्य को काफ़ी हद तक आश्वस्त करने वाले, संकटों से घिरी सृजनशील ऊर्जा की याद को ताज़ा करते, इन संस्मरणों में लेखक ने विरासत के मार्मिक तथ्यों के माध्यम से, कुछ तीख़े सवाल भी खड़े किये हैं, जो नये विमर्श के लिए मूल्यवान सूत्र सिद्ध हो सकते हैं।
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