नागार्जुन संचयन - नागार्जुन मैथिल-भाषी हिन्दी कवि हैं। मैथिली के भी बड़े कवि हैं। साहित्य अकादेमी सम्मान उन्हें मैथिल-कवि के रूप में मिला है। वे संस्कृत पाली के विद्वान हैं। कुछ दिनों तक बौद्ध रह चुके हैं। उन्होंने संस्कृत में भी काव्य-रचना की है। बांग्ला में भी। यह जानकर कुछ लोगों को आश्चर्य होगा कि उन्होंने कुछ कविताएँ पंजाबी में भी की हैं। मैथिली में उनका कवि नाम यात्री है। राहुल सांकृत्यायन को छोड़ दें तो वे हिन्दी के सबसे बड़े यात्री या घुमक्कड़ कवि हैं। जीवन और यात्री जीवन की समस्त अनुभव सम्पदा उनकी कविता को मिली है। यह संचयिता उस सम्पदा का प्रमाण है। नागार्जुन जनकवि हैं। वह प्रगतिशील कवि भी हैं। जनवादी कवि भी, नव जनवादी कवि भी और राष्ट्रीय कवि भी। वह किसी राजनीतिक दल की आलोचना कर सकते हैं और किसी की भी प्रशंसा। वह पार्टी कवि भी हो सकते हैं, पार्टीवादी नहीं। शुक्र है कि हमारे बीच एक ऐसा कवि है। नागार्जुन कवि रूप में किसी को बख्शने वाले कवि नहीं। नागार्जुन के पास वह ठेठ निगाह है जो ताड़ने में अचूक है कि कौन नस कैसे फड़क रही है। भाषा का सर्वाधिक सर्जनात्मक प्रयोग लोक-जीवन में होता है। महान कवि उससे सीखते हैं और रचना में उतारते हैं—प्रसंगानुसार उसका नियोजन करते हैं। नागार्जुन ऐसा ही करते हैं। नागार्जुन की सौन्दर्य दृष्टि बहुत सूक्ष्म और बहुत व्यापक है। उनके काव्य में सारी सृष्टि का सौन्दर्य रस निचुड़ आया है। प्रकृति सौन्दर्य, मानव सौन्दर्य, एवं श्रम सौन्दर्य—सब उनके यहाँ भरपूर मिलेगा। जो सौन्दर्य का प्रेमी होगा वह कुरूपता से घृणा करेगा। नागार्जुन की घृणा ने प्रधानतः व्यंग्य का रूप लिया है। उनका व्यंग्य असंगति और विषमता बोध पर आधारित है। स्वातन्त्र्योत्तर भारत में स्वाधीनता आन्दोलन के सिद्धान्त मुखौटे बन गये हैं। नागार्जुन ने राजनीतिक-सामाजिक व्यंग्य की अपूर्व कविताएँ लिखी हैं। इनमें 'आओ रानी हम ढोयेंगे पालकी' सर्वाधिक प्रसिद्ध हुई है।
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