मास्टर साब - ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित बांग्ला की यशस्वी साहित्यकार महाश्वेता देवी के लिए शब्द और कर्म अलग-अलग नहीं है। उनका कर्म और उनकी सारी चिन्ताएँ जहाँ शोषित एवं वंचित लोगों के लिए हैं, वहीं उनके समग्र सृजन के केन्द्र में भी शोषण के विरुद्ध तीव्र और सार्थक विद्रोह है। कहना न होगा कि इसका साक्षी उनका यह उपन्यास 'मास्टर साब' भी है। 'मास्टर साब' एक जीवनीपरक विचारोत्तेजक और मार्मिक उपन्यास है। इस उपन्यास में शोषण और उत्पीड़न के ख़िलाफ़ निरन्तर संघर्ष करने वाले ग़रीब एवं समर्पित स्कूल-मास्टर की आत्मीय व्यथा-कथा तो है ही, उनके बहाने महाश्वेता जी ने साठ-सत्तर के दशक में उपजे नक्सलवादी आन्दोलन की गतिविधियों और उसके वैचारिक सरोकारों को भी पूरे साहस के साथ प्रस्तुत किया है। दरअसल मास्टर साब की कहानी को कहने की कोशिश में महाश्वेता देवी ने समकालीन समाज और परिवेश की विसंगतियों के बीच एक साधारण चरित्र के जुझारू संकल्प को अपनी असाधारण लेखनी से प्रखर अभिव्यक्ति दी है। शिल्प और भाषा के स्तर पर इस अद्वितीय प्रयोगात्मक उपन्यास की प्रस्तुति निस्सन्देह हिन्दी पाठकों के लिए महत्त्वपूर्ण उपलब्धि होगी।
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