Jahan Bhi Ho Zara Si Sambhavna

Hardbound
Hindi
9788126340279
1st
2012
124
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जहाँ भी हो जरा-सी सम्भावना - प्रदीप जलाने की कविताएँ हमारे समय में कथ्य शिल्प और संवेदना का ऐसा पारदर्शी संसार खड़ा करती है जिसमें हम अपने समय का आवेश भी देख सकते हैं और उसके आर-पार भी। प्रदीप को अपने समकालीन समय और समाज की गहरी पहचान है और उसे व्यक्त करने के लिए एक जागरूक और राजनीतिक समझ भी। प्रदीप की कविताओं में घर-परिवार का संसार बड़े ही अपने रूढ़ रूप में व्यक्त होता है लेकिन इसमें मुक्ति की छटपटाहट साफ़ झलकती है। 'पगडण्डी से पक्की सड़क' इस अर्थ में एक बड़ी कविता है। 'कैलेंडर पर मुस्कुराती हुई लड़की' के माध्यम से कवि हमारे भीतर गहरे तक पैठ गये बाज़ार और उसकी मंशा को बेनक़ाब करता है। मनुष्य के पाखण्ड, दोमुँहेपन और स्वार्थ को प्रदीप अपनी कविताओं में नये तेवर के साथ व्यक्त करते हैं। खरगोन के परमारकालीन भग्न मन्दिरों पर लिखी कविता में प्रदीप जिन 'मेटाफर्स' का प्रयोग करते हैं, वे उनके इतिहासबोध, दृष्टि और रेंज के परिचायक हैं। प्रदीप अपनी कविताओं के प्रति उतने ही सहज हैं जितने कि अपने समय-समाज के प्रति, लेकिन यह सहजता अपने भीतर ऐसा कुछ ज़रूर सँजोये है जो अन्ततः परिवर्तनकामी है। कविता के भीतर और बाहर प्रतिबद्धता और विचारधारा का अतिरिक्त शोर-शराबा मचाये बग़ैर प्रदीप की ये कविताएँ मनुष्य के पक्ष में खड़ी हुई हैं—सहजता से, मगर दृढ़ता के साथ।

प्रदीप जिलवाने (Pradeep Jilwane )

प्रदीप जिलवाने - जन्म: 14 जून, 1978, खरगोन (म.प्र.)। देवी अहिल्या विश्वविद्यालय से एम.ए.हिन्दी साहित्य (विश्वविद्यालय की प्रावीण्य सूची में स्थान), पीजीडीसीए। फ़िलहाल म.प्र. ग्रामीण सड़क विकास प्राध

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