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ईश्वर से भेंटवार्ता - पहला संग्रह 'देह धरे को दंड' के बाद खगेन्द्र ठाकुर का यह दूसरा व्यंग्य-संग्रह है—'ईश्वर से भेंटवार्ता'। खगेन्द्र के व्यंग्य-लेखन का उद्देश्य जीवन और समाज के यथार्थ को उजागर कर विनोद शैली में पाठकों को गुदगुदाने का रहा है। इस संग्रह में भी उनकी अनुभव सिद्ध विषयवस्तु और लेखन की समन्वित कला देखी जा सकती है। निश्चित ही यहाँ लेखक का रुख आलोचनात्मक है। इन व्यंग्य-लेखों को पढ़ते हुए कभी हमें हजारीप्रसाद द्विवेदी याद आते हैं तो कभी हरिशंकर परसाई। खगेन्द्र के निबन्ध भी जब कभी क्लासिकल वस्तु को तो कभी सामाजिक वस्तु को लेकर स्वतः ही व्यंग्यात्मक शैली में ढल जाते हैं। असल में खगेन्द्र जी के पास जीवन और समाज के अनुभवों का ऐसा समृद्ध और विविधतापूर्ण ख़ज़ाना है। कि उनके लेखन को किसी एक विधा में व्यक्त करना सम्भव नहीं होता। प्रस्तुत संग्रह 'ईश्वर से भेंटवार्ता' भी कुछ ऐसे ही शिल्प में ढला हुआ देखा जा सकता है। रोचकता से भरपूर एक पठनीय कृति।
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