हिन्दी के आंचलिक उपन्यास एवं उपन्यासकार - किसी भी देश के सभी अंचल एक दूसरे से अभिन्न होते हुए भी बहुत से अर्थों में अलग-अलग हैं। यदि अंचल की तुलना की जाय तो प्रत्येक अंचल की अपनी विशेषताएँ हैं। इसका कारण यह है कि कोई भी अंचल एक विशिष्ट भौगोलिक पर्यावरण में स्थित होता है। भौगोलिक सीमाओं में बँधे अंचल अपनी धरती को विस्तृत मैदान, झाड़, पहाड़, नदी-नाले, झरने, सरोवर इत्यादि का पूर्ण विवरण देते हैं। भौगोलिक संस्कृति, ऐतिहासिक परम्परा व वैज्ञानिक माध्यम के साथ ही 'अंचल' को एक ठोस व्यक्तित्व प्राप्त होता है। साहित्य समीक्षक कुमार विमल के शब्दों में, डॉ. फणीश सिंह का यह समीक्षात्मक प्रयास आंचलिक उपन्यासों के प्रति किसी आग्रही दृष्टिकोण से प्रेरित नहीं है। आंचलिक उपन्यासों की उपलब्धियों, ख़ासकर संक्रमणशील परिवेश का साक्ष्य बनने की शक्ति का इसमें उद्घाटन हुआ है। इतना ही नहीं, आंचलिक उपन्यासों के समग्र सोच की सीमाएँ भी उभरकर इसमें सामने आयी हैं। निःसन्देह आंचलिक उपन्यासों के पाठकों को यह समीक्षा कृति बहुत कुछ नयी और विचारोत्तोजक सामग्री देने में सफल होगी।
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