Ghaas Ka Pul

Hardbound
Hindi
9789326352895
2nd
2016
204
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घास का पुल - इधर हमारे समाज में धर्म की परिघटना और ज़्यादा उलझती गयी है क्योंकि सत्ता की राजनीति से इसका सम्बन्ध और गहराया है। यह वही समय है जब नव-उदारवाद की जड़ें भी फैली हैं। इस फ़ौरी राजनीति में साम्प्रदायिकता धर्म की खाल ओढ़ लेती है जिसमें 'दूसरा' फ़ालतू है। जिस धर्म का मूल अद्वैत हो, उसमें दूसरा संदिग्ध हो जाय, इससे बड़ी विडम्बना और क्या होगी! यह उपन्यास इस प्रक्रिया के व्यापक तन्तुओं को पकड़ने का प्रयास करता है। दूसरी तरफ़ धर्म का सकारात्मक पक्ष है। यह सामान्य जीवन के दुख को धीरज और उम्मीद देता है। फ़न्तासी ही सही, यह उस अँधेरे कोने को भरता है। जो आदमी के भीतर सनातन है। इसका ख़तरा यही है कि यह सामाजिक जड़ता में तब्दील हो जाता है। कबीर के मुहावरे में कहें तो धर्म यदि 'निज ब्रह्म विचार' तक सीमित रहे तो वह सकारात्मक है। जैसे ही यह संगठित धर्म में बदलता है, उसके सारे ख़तरे उजागर हो जाते हैं। यह उपन्यास धर्म की सामाजिक परिणतियों की शिनाख़्त का एक प्रयास है, जो धर्म के संगठित रूपों से पैदा होती हैं। इसमें एक ओर माला फेरती चौथे धाम की प्रतीक्षा करती अम्मा हैं, दूसरे छोर पर आतंकी के शक़ पर ग़ायब हुआ असलम है जिसका शिज़रा वाज़िद अली शाह से जुड़ता है — जिनके लिए 'क़ाबा' और 'बुतख़ाना' में कोई फ़र्क़ नहीं था। इसका अंजाम एक गहरी मानवीय त्रासदी है जिसमें एक किसान का उजड़ना भी शामिल है।

रवीन्द्र वर्मा (Ravindra Verma)

रवीन्द्र वर्मा1 दिसम्बर 1936 को झाँसी (उत्तर प्रदेश) में जन्म । प्रारम्भिक शिक्षा झाँसी में प्रयाग विश्वविद्यालय से एम.ए. (इतिहास) 1959 में सन् 1965 से कहानियों का प्रकाशनारम्भ। इसी दशक में क़रीब दो दर

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