Chaar Darvesh

Hridayesh Author
Hardbound
Hindi
9789326351485
2nd
2013
172
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चार दरवेश - वरिष्ठ कथाकार हृदयेश की रचनाशीलता में अपने समय के ज्वलन्त प्रश्न गूँजते रहते हैं। 'चार दरवेश' हृदयेश का नया उपन्यास है। इस उपन्यास की कथावस्तु चार बुजुर्गों के 'सन्ध्या समय' का विश्लेषण करते हुए विकसित होती है। रामप्रसाद, शिवशंकर, दिलीपचन्द और चिन्ताहरण के पास अपने-अपने जीवन के खट्टे-मीठे अनुभव है। युवावस्था की विविध स्मृतियाँ हैं जो किसी न किसी रूप में मानवीय मूल्यों पर चलने की ज़िद का परिणाम हैं। इन सबके साथ ये चारों व्यक्ति पूँजीवादी, लोलुप और बर्बर परिवेश का सामना कर रहे हैं। हरेक व्यक्ति की प्रकृति भिन्न है, संघर्ष की शक्ल जुदा, जिजीविषा के स्रोत अलग—लेकिन नियति एक है। त्रासद नियति। एक प्रसंग में हृदयेश लिखते हैं, 'आप यो समझिए, कि जैसे दो गुंडे अपने-अपने उद्देश्य लक्ष्य की प्राप्ति के लिए एक हो जाते हैं, वैसे समय और बाज़ार एक हो गये हैं। इसलिए आज का समय क्रूर और हिंसक तो होगा ही होगा और माहौल को वैसा बनायेगा।'—इस विचारवृत्त के भीतर 'चार दरवेश' विस्तार पाता है। वस्तुतः यह उपन्यास एक दारुण यथार्थ से हमारा साक्षात्कार कराता है। उस यथार्थ से जिससे हम सब भी घिरे हुए हैं। —सुशील सिद्धार्थ

हृदयेश (Hridayesh)

हृदयेश - जन्म: 2 जुलाई, 1930, शाहजहाँपुर (उ.प्र.)। शिक्षा: इंटरमीडिएट, साहित्यरत्न। अब तक 10 उपन्यास जिनमें प्रमुख हैं— 'हत्या', 'सफ़ेद घोड़ा काला सवार', 'सांड', 'दण्डनायक', 'किस्सस हवेली', 'चार दरवेश'; 20 कहानी

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